(गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में जन्म। वर्तमान में चिकित्सक के रूप में झांसी (उत्तर प्रदेश) कार्यरत। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी के छतरपुर (मध्य प्रदेश) केंद्र तथा स्थानीय ऍफ एम गोल्ड के कार्यक्रमों में रचनाओं का निरन्तर पाठ।कहानी संग्रहरू श्अपेक्षाओं के बियाबानश् काव्य संग्रहरू श्अनुरणनश् प्रकाशनाधीन)
ताजमहल को देखते सैलानी उसके सौंदर्य को अभिभूत निहारते थे। हाथों में लाल चूड़ा पहने एक लड़की ने लड़के के सीने पर सिर रखते हुए कहा - मेरे मरने के बाद तुम भी मुझे यूँ ही जिंदा रखना। बात खत्म होने से पहले ही लड़के ने उसके कोमल अधरों पर अपनी तर्जनी रख दी।।वहीं कुछ दूरी पर कुछ अन्य सैलानी मजदूरों के कटे हाथ और बेगमों की गिनती में उलझे थे। जया की सूनी आँखे माही और परी की तस्वीरें लेते मानस पर टिकी थी। मैं उसके मनोभाव समझ सकती थी।
“देख जया, मैं भी डॉक्टर हूं। तू समझ कि जब साथ काम करते हैं तो आपस में कुछ आत्मीयता स्थापित हो जाती है। जैसे निर्देशक और अभिनेत्री... वैसे ही एक सर्जन और एनेस्थेटिस्ट! इनमें भी साथ काम करते-करते एक सामंजस्य... एक लगाव उत्पन्न हो जाता है...” मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा।
“इतनी अधिक आत्मीयता कि माही आपत्तिजनक तस्वीरें मानस को भेज रही है?” जया ने रुंधे गले से कहा।
मैंने आश्चर्य से उसे देखा। एक चुप्पी हम दोनों के अधरों से होती हुई दबे पाँव पेड़ों पर चढ़ी और निरभ्र आकाश तक फैल गई।
वह दुप्पटे से आँखें पोंछ रही थी। यह पिकनिक जया का मन बहलाने के लिए प्लान की गई थी लेकिन माही की उपस्थिति ने उसे दुख ही अधिक दे दिया था।