Saturday, February 12, 2022

देव या देवारि? (कहानी) : -डॉ निधि अग्रवाल


 

(गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)  में जन्म। वर्तमान में चिकित्सक के रूप में झांसी (उत्तर प्रदेश) कार्यरत। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में  रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी के छतरपुर (मध्य प्रदेश) केंद्र तथा स्थानीय ऍफ एम गोल्ड के कार्यक्रमों में  रचनाओं का निरन्तर  पाठ।कहानी संग्रहरू श्अपेक्षाओं के बियाबानश्   काव्य संग्रहरू श्अनुरणनश् प्रकाशनाधीन)

ताजमहल को देखते सैलानी उसके सौंदर्य को अभिभूत निहारते थे। हाथों में लाल चूड़ा पहने एक लड़की ने लड़के के सीने पर सिर रखते हुए कहा - मेरे मरने के बाद तुम भी मुझे यूँ ही जिंदा रखना। बात खत्म होने से पहले ही लड़के ने उसके कोमल अधरों पर अपनी तर्जनी रख दी।।वहीं कुछ दूरी पर कुछ अन्य सैलानी मजदूरों के कटे हाथ और बेगमों की गिनती में उलझे थे। जया की सूनी आँखे माही और परी की तस्वीरें लेते मानस पर टिकी थी। मैं उसके मनोभाव समझ सकती थी।

“देख जया, मैं भी डॉक्टर हूं। तू समझ कि जब साथ काम करते हैं तो आपस में कुछ आत्मीयता स्थापित हो जाती है। जैसे निर्देशक और अभिनेत्री... वैसे ही एक सर्जन और एनेस्थेटिस्ट! इनमें भी साथ काम करते-करते एक सामंजस्य... एक लगाव उत्पन्न हो जाता है...” मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा।

“इतनी अधिक आत्मीयता कि माही आपत्तिजनक तस्वीरें मानस को भेज रही है?” जया ने रुंधे गले से कहा। 

मैंने आश्चर्य से उसे देखा। एक चुप्पी हम दोनों के अधरों से होती हुई दबे पाँव पेड़ों पर चढ़ी और निरभ्र आकाश तक फैल गई।

वह दुप्पटे से आँखें पोंछ रही थी। यह पिकनिक जया का मन बहलाने के लिए प्लान की गई थी लेकिन माही की उपस्थिति ने उसे दुख ही अधिक दे दिया था।

कविताएँ: पंखुरी सिन्हा

 



हामिद कारज़ाई के देश का चुनाव

ख़बरों की विभीषिका इस बीच 

बहुत ज़्यादा रही 

काफी कँपाया ख़बरों ने 

कुछ आदत भी डाल दी 

और कविता दूर रही 

इस भयानक आक्रांत समय से 

बहुत बौद्धिक रही कविता

जबकि दोनों को पढ़ने का वक़्त 

लगभग एक रहा 

लेकिन पढ़े लिखे अक्षरों के बने 

सब कुछ के अचानक बंद होने का भी वक़्त रहा 

कम से कम एक दिन 

जो केवल कहे सोचने को 

हिंसा के कारणों पर

कि इतनी संभ्रांत हो हिंसा 

कि शोध का विषय बन जाए 

हमारे अपने अफ़ग़ानिस्तान में 

काबुली वालों के देश में 

अब्दुमोमिनोव अब्दुल्लाह (उज़्बेकिस्तान) की कहानी: समय के चोर:

 

मेरा नाम डोनियोर है। मेरा पड़ोसी अब्दुल्ला और मैं घनिष्ठ मित्र बन गए हैं। एक दिन हमें मौज-मस्ती करने का कोई तरीका नहीं मिल रहा था। हमारा कोई लक्ष्य नहीं था। हमें नहीं पता था कि क्या करना है। जब हम लकड़ी के टुकड़े से कुछ बना रहे थे तो अचानक मेरे पिता की नींद खुल गई। उसकी आँखें आधी खुली थीं जब उन्होंने कहा:

"अरे, समय के चोर! क्या आप अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?"

मुझे अपने पिता के "समय चोरों" का मतलब बिल्कुल भी समझ नहीं आया। मैं पूछना चाहता था, लेकिन वह सो गये।


मेरे दोस्त अब्दुल्ला ने भी पूछा "क्या हम चोर हैं?"

दिन का उजाला हुआ तो वह अपने घर चला गया। मैं भी थक कर सो गया। लेकिन मुझे याद आया कि मुझे स्कूल जाने में देर हो गई थी, इसलिए मैंने जल्दी से अपना चेहरा धोया और जल्दी में चाय पी ली। मुझे याद नहीं है कि मैंने क्या खाया.. मैंने सोचा कि मुझे स्कूल के लिए देर हो जाएगी, लेकिन कक्षा अभी तक शुरू नहीं हुई थी। मेरे कक्षा में पहुंचते ही शिक्षिका अंदर आ गई। हम सभी ने शिक्षिका का सम्मानपूर्वक अभिवादन किया । उन्होंने ने हमें सम्बोधित करते हुए कहा - 

"मेरे प्यारे छात्रों! मैं आपको देखकर बहुत खुश हूं। मेरी खुशी असीम है।"

जैसे ही हमारी शिक्षिका हमें विषय समझा रही थी, मेरे एक सहपाठी ने आकर कहा, "शिक्षिका, मुझे खेद है कि मुझे आज देर हो गई।"

"डोनियोर, अब और देर मत करो।, शिक्षिका ने कहा। "इस बार मैं तुम्हें माफ कर दूंगी, लेकिन अगली बार मैं तुम्हें सजा दूंगी।"

कवियाएँ :- अदिती राणा जम्बाल

 

मजदूर 

आसान नहीं है मजदूर होना

फुटपाथ पर बोरियां ओढ कर सोना।

पत्थरों के महल बनाना

पर खुद का सर ढकने के लिए छत के लिए तरसना ।


लोगों के खाबों को पूरा करने बाला रचयिता बनना

मगर खुद की दो वक़्त की रोटी के लिए मोहताज होना।

हर चीज में अपना पसीना लगाना

फिर भी बिन पैसे बिन रोटी के रह जाना।


पेट की आग के लिए गांव से जाना

सुजाता की दो कविताएँ



वृक्ष का रोमांच


मां चली गई तुम

पर जाते जाते

कई रिश्तों, रस्मों, रहस्यों से

पर्दे उठा गई

तुम्हारे जाने भर की देर थी

उम्र की कितनी सीढियां चढ़ गई मैं

_तैरना था संबंधों के ताल    मेंजलजीवों की कचोट से बचते हुए

चलना था सड़क के बीचों बीच

खुद को बचाते हुए

असीम आकाश में उड़ना था

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता

अम्बिका दत्त जी का काव्य –संग्रह ’नादान आदमी का सच ’ पढ़ते ही ताज़ी हवा के झोंके की छुअन सी महसूस होती है। हिंदी और राजस्थानी में उनके नौ पु...