हामिद कारज़ाई के देश का चुनाव
ख़बरों की विभीषिका इस बीच
बहुत ज़्यादा रही
काफी कँपाया ख़बरों ने
कुछ आदत भी डाल दी
और कविता दूर रही
इस भयानक आक्रांत समय से
बहुत बौद्धिक रही कविता
जबकि दोनों को पढ़ने का वक़्त
लगभग एक रहा
लेकिन पढ़े लिखे अक्षरों के बने
सब कुछ के अचानक बंद होने का भी वक़्त रहा
कम से कम एक दिन
जो केवल कहे सोचने को
हिंसा के कारणों पर
कि इतनी संभ्रांत हो हिंसा
कि शोध का विषय बन जाए
हमारे अपने अफ़ग़ानिस्तान में
काबुली वालों के देश में
राष्ट्रपति चुनाव का निरीक्षण
मुयायना करने आईं जर्मन
और कैनेडियन अधिकारिओं
की उनके अपने अंगरक्षक ने
गोली मारकर हत्या कर दी
क्या हममे से कोई नहीं समझता
इस बात का संताप
कि दखल आख़िर क्या है?
जल में स्थिर है मछली
घंटों बे टेक स्थिर होती है
मछली जल में
बुलबुले छोड़ती
तलाशती नहीं थककर
पानी की ज़मीन पर पाँव
एकदम कल खिलेगी
कह देती है
फूल की कली
पर असह्य लगता है इंतज़ार
और सबकुछ
जब वो कहता है
झूठा है
मेरा आलिंगन
मुझे दरअसल प्यार नहीं उससे
वह आश्वासन है
सारी आरामदेह बातों का
और प्रबंधकर्ता भी...............
केकड़े की टांगें और एक दूसरे पर चलना
आठों टाँगे चलायमान होती हैं
केकड़े की
जाल में, बाल्टी में
फिर टोकरी में
वो कहीं नहीं जाते
एक दूसरे पर चलते हैं
और उन्हें ज़िंदा देख
ग्राहक उन्हें खरीद लेते हैं..................
सैनिक
उन्हें सैनिक कहा जा सकता था
या मुमकिन है सिपहसलार भी
वो एक परंपरा के योद्धा थे
किसी राजतन्त्र के हरकारे नहीं
जिसके लिए ज़मीन उन्हें अर्जित करनी हो
दरअसल, कोई साम्राज्य या सम्राट था भी नहीं
क़बीलों का बना था
वह खुंखार प्रदेश
अफ़ग़ानिस्तान
बाद में आये
काबुल के किस्से
और फेरीवाले
महमूद ग़ज़नी और मुहम्मद ग़ोरी
शायद अफ़ग़ानिस्तान से भी ऊपर
ईरान नामक जगह से
जहाँ फ़ारसी सभ्यता निखार पर थी
और समरकंद
उज़्बेकिस्तान से आया था बाबर
लेकिन उससे पहले
मुसलमान शासन की
सदियाँ बीत चुकी थीं
यहाँ
ख़िलजी, तुगलक, ग़ुलाम वंश के शासन की
लेकिन बात तो वहां की है
कबीलों के बने उस राज्य की
जिसकी अफीम की खेती ने ही
केवल तहलका नहीं मचा रखा है
तस्करी और चरस गांजे की दुनिया में
बल्कि जिसने मदरसे खोल रखे हैं
युद्ध की तालीम देने के लिए
बल्कि कत्लेआम की
खुंखार कबीलों वाला यह देश
जहाँ युद्ध छिड़ा है
जो युद्धस्थल बना है
खाड़ी और अरब तमाम नाराज़गियों का
और जहाँ से युद्ध फ़ैल रहा है हर कहीं
क्या वहां से लौट जाएंगे
वो सैनिक
जिनकी निंदा में समूची दूसरी, तीसरी दुनिया की व्यवस्था लगी है
और जो लगभग मुट्ठी में थामे हैं
सारा युद्ध......................
बातों का पहुँचना
कुछ बातों के पहुँचने की भी बातें थीं
डाक के पहुँचने की तरह
बल्कि सेना के भी पहुँचने की तरह
पहाड़ के ऊपर
या पहाड़ के नीचे
जब वह पैदल पहुँचती है
घाटी की पहचान करती
वाकिफ होती
बातें करती
आवो हवा से
ताकि वह अजनबी न लगे
वह सारी प्रक्रिया जिसे अकक्लीमेटाईज़ेशन
कहते हैं
रूपांतरित करती बातों को
अनूदित से ज़्यादा आसान बनाती
परिवेश में ढ़ालती
आवो हवा में
स्थानीय विश्वासों में
बातों की स्थानीयता बताती
उन्हें कुछ ग्राह्य बनाती
ताकि एक दम फिरंगी न लगें
डाक से आयीं विकास गाथाएं
और उन्हें कार्यान्वित करने की लिपि
कुछ अपठनीय आदेश सी
और भी विकास के किस्से
औरतों की बगावत गाथाएं भी ....................
खेती का सम्मोहन
बड़ा अद्भुत है
खेती का सम्मोहन
खुलेपन का
मौसम में बोने, काटने, उगाने का
मौसम के यों बाहों में लहलहा जाने का
बिल्कुल वैसा, जैसा दूर से दिखता है गाँव
गीतों, गाथाओं में पढ़ा हुआ नहीं
न जाना, न अनजाना
बस प्रवेश को तैयार
भीतर जाने पर
दुसध टोली के आगे
अगर ठमकते हों पाँव
तो बात केवल जाति प्रथा में विश्वास की नहीं है...................
फसलों का मालिक
एक अजीब बात है
खेती के सम्बन्ध में
जैसे नितांत अपरिचित
एक शहर में जाकर
एक कमरा किराए पर लिया जा सकता है
विदेश में भी जाकर
वैसे एकदम अपरिचित गाँव में
खेत नहीं लिया जा सकता
किराए पर
किराए पर भी
खेती करने
या करवाने के लिए
वहीँ का होना होता है
फसलों के मालिक को...............
गाँव का माहौल
खुली खेत में तैयार खड़ी फसल की तरह
असुरक्षित नहीं होना चाहिए
लड़कियों का बाहर आना जाना
और फसलें भी जितनी तैयार हों
उतनी ज़्यादा असुरक्षित होती जाएँ
लेकिन गाँव का माहौल
भी आखिर कोई चीज़ है.
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