Monday, July 18, 2022

'अजय' चयनित कविताएं–एक सफ़र- सुजाता


सुजाता 
अजय जी की कविताओं में हिमाचल की मिट्टी की सौंधी गंध है।पहाड़ी गांव , जनमानस , रीति रिवाज़ , परंपराएं ,जीवन शैली उनकी कविताओं में उभर कर आए हैं, लेकिन वे अनुभव और चेतना के परों पर सवार बहुत दूर निकल गई हैं। वे समकाल की बुलंद आवाज़ हैं, जो अपने समय और उससे जुड़े यथार्थ का प्रतिनिधित्व करती हैं।
संग्रह की पहली कविता   ‘प्रार्थना’ में गजब की सादगी है।

एक आम ग्रामवासी के मुख से सुनिए –

ईश्वर/मेरे दोस्त/मेरे पास आ/यहां बैठ/बीड़ी पिलाऊंगा/चाय पीते हैं । सादगी की यह झलक उनकी और भी कविताओं में मिलती है–‘एक आदमी होता था’  की कुछ पंक्तियां हैं  पहले एक पहाड़ होता था/एक आदमी होता था/लेकिन आदमी इतने ज़ोर से बहा /कि नदी सो गई।

‘भोजवान में पतझड़’ में कवि की मानवीय संवेदनाओं का विस्तार झलकता है– लेटी रहेगी एक कुनकुनी उम्मीद/मेरी बगल में/एक ठंडी मुर्दा लिहाफ के नीचे/कि फूट जाएंगी कोंपले/लौट आएगी अगले मौसम तक/भोजवन में जिंदगी।

आदिवासी बहनों के लिए लिखी कविता ‘ब्यूंस की टहनियों ’ में यही संवेदना औरत के प्रति है –जो जितना दबाओ झुकती जाएंगी/जैसा चाहो लचकाओ लहराती रहेंगी/जब सूख जाएंगी कड़क कर टूट जाएंगी।

क्या स्त्री– पुरुष बराबर हैं? क्या सच है कि औरत सामाजिक  और आर्थिक शोषण का शिकार नहीं? यह कविता ऐसे कई सवालों पर और बड़ा सवाल खड़ा करती है।

कविताएँ- आरती कुमारी, बिहार।

डॉ० आरती कुमारी हिंदी, उर्दू व अंग्रेज़ी में समान अधिकार रखती हैं। वह एक कवि, ग़ज़लगो के साथ शिक्षाविद भी हैं। उनकी कई रचनाएँ व आलेख राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनका काव्य संग्रह ' धड़कनों का संगीत' राजभाषा विभाग द्वारा सम्मानित एवं अभिधा प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। उनके संपादन में ये नए मिज़ाज का शहर है और बिहार की महिला ग़ज़लकार  ग़ज़ल संग्रह आया है। उनकी रचनाएँ आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारित होती रहती हैं।

स्मृति 


आज

कई दिनों बाद

स्मृति के जादूगर ने

पलट डाले

जिंदगी की किताब के

कई पृष्ठ ..

वक्त की स्याही से लिखे

उन पन्नों पर दिखे

अठखेलियाँ करते शब्द 

अनुशासित भाव

कुछ स्पंदित क्षण

सूखे गुलाब के निशान 

और

आँखों की नमी से धुले

तुम्हारे ख़त...


पुल


विश्वास की ईंटों को जोड़कर

प्यार के गारे से सना

चलो बनाएँ  

दोहा गीतिका- शकुंतला अग्रवाल 'शकुन' , राजस्थान।

 

नाम~ शकुंतला अग्रवाल "शकुन", लघु कथा,व  छांदसिक रचनाएँ ।

प्रकाशित कृतियाँ- 1.दर्द की परछाइयाँ (2017), 

2. "बाकी रहे निशान" दोहा संग्रह( 2019) , 

3."काँच के रिश्ते" दोहा संग्रह(2020),

4."भावों की उर्मियाँ" कुंडलियाँ  संग्रह (2021) 5. 'लघुकथा कौमुदी' लघुकथा संग्रह(2022)

व अनेक साझा संग्रह

प्रकाश्य:-घनाक्षरी,गीत, कविता व एकांकी संग्रह। 

सम्मान व अलंकरण - हिंदी दिवस पर जिला साहित्यकार परिषद भीलवाड़ा द्वारा "साहित्य सुधाकर"-2018

विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा~ 'विद्यावाचस्पति' सम्मान-2018 में

द्वारकेश साहित्य परिषद कांकरोली द्वारा सम्मानित- 2019, काव्यांचल ग्रुप- 'छंद-रथी'-2019, व फरवरी 2020 में दोहा शिरोमणि सम्मान व अन्य कई सम्मान।


 

दोहा


छंदाधारित गीतिका


मैं मूरख कैसे करूँ, शिव जी का गुणगान?

शब्द पड़े हैं मौन सब,नहीं छंद का ज्ञान।

*

नश्वर जग में हो तुम्हीं,सबके तारणहार,

जान गया इस सत्य को,वो सच्चा- इंसान।

पग-पग पर धोखे यहाँ,कैसे हो विश्वास?

परख सके सबको 'शकुन',ऐसा दो संज्ञान।

*

माया डसती नित यहाँ, घायल होती रूह,

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता

अम्बिका दत्त जी का काव्य –संग्रह ’नादान आदमी का सच ’ पढ़ते ही ताज़ी हवा के झोंके की छुअन सी महसूस होती है। हिंदी और राजस्थानी में उनके नौ पु...