Monday, April 10, 2023

रंजीत साहू की दो कवियाएँ


गुमसुम हुई शाम सुहानी 


फिर बहकने लगा  फागुन देखो,


टेसू के पेड़ों  से गुजर गया I


ढलती शाम की जलती किरणों में,


इश्क़ का हुनर  बिखर गया !



एक कश्मकश शुरू हुई  दिल में, 


भूलने और याद करने  में I


 फर्क सब कुछ मिटने  लगा है, 


मिट जाने  या ज़िन्दा रहने में  I

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता

अम्बिका दत्त जी का काव्य –संग्रह ’नादान आदमी का सच ’ पढ़ते ही ताज़ी हवा के झोंके की छुअन सी महसूस होती है। हिंदी और राजस्थानी में उनके नौ पु...