Saturday, March 4, 2023

डॉ. धर्मपाल साहिल की तीन कवियाएँ

धर्मपाल साहिल
पत्धर

शीशे के घर में रहने वाले, 

करते हैं बात पत्थर की.

पत्थर जब पूजा गया तो, 

बढ़ गई औकात पत्थर की...! 

वही मंदिर, वही मस्जिद

 और वही गुरुद्वारे में था, 

हर जगह नज़र आई, 

जात एक ही पत्थर की.....! 

शीशे का होकर रिश्ता, 

शीश महल जैसा था, 

हो गया चूर जब लगी, 

 उसे घात पत्थर की...! 

पत्थरों के शहर में , 

 पत्थर जैसे लोग मिले, 

 फलदार पेड़ों को मिली, 

Thursday, March 2, 2023

'शिखर'- शैलेंद्र कपिल

 (आज मेरी सेवानिवृत्ति का एक वर्ष पूरा हो गया है)


शिखर

परिवर्तन क्या है, बेहतरीन एहसास हो रहा है

ज़िन्दगी का हर  पड़ाव  प्रभावशाली रहा है,

अनुभवों को मैंने हर स्तर पर सांझा किया है

उम्मीद, उल्लास और उमंग से

जीने की मन में आज भी ललक जिंदा है।


जिंदगी को एक बात और कहनी है,

उम्मीद रखकर जीनी आगे बढ़ रही जिंदगानी है,

अपराध बोध से उठकर के हमें जीना है

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता

अम्बिका दत्त जी का काव्य –संग्रह ’नादान आदमी का सच ’ पढ़ते ही ताज़ी हवा के झोंके की छुअन सी महसूस होती है। हिंदी और राजस्थानी में उनके नौ पु...