(गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) में जन्म। वर्तमान में चिकित्सक के रूप में झांसी (उत्तर प्रदेश) कार्यरत। विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी के छतरपुर (मध्य प्रदेश) केंद्र तथा स्थानीय ऍफ एम गोल्ड के कार्यक्रमों में रचनाओं का निरन्तर पाठ।कहानी संग्रहरू श्अपेक्षाओं के बियाबानश् काव्य संग्रहरू श्अनुरणनश् प्रकाशनाधीन)
ताजमहल को देखते सैलानी उसके सौंदर्य को अभिभूत निहारते थे। हाथों में लाल चूड़ा पहने एक लड़की ने लड़के के सीने पर सिर रखते हुए कहा - मेरे मरने के बाद तुम भी मुझे यूँ ही जिंदा रखना। बात खत्म होने से पहले ही लड़के ने उसके कोमल अधरों पर अपनी तर्जनी रख दी।।वहीं कुछ दूरी पर कुछ अन्य सैलानी मजदूरों के कटे हाथ और बेगमों की गिनती में उलझे थे। जया की सूनी आँखे माही और परी की तस्वीरें लेते मानस पर टिकी थी। मैं उसके मनोभाव समझ सकती थी।
“देख जया, मैं भी डॉक्टर हूं। तू समझ कि जब साथ काम करते हैं तो आपस में कुछ आत्मीयता स्थापित हो जाती है। जैसे निर्देशक और अभिनेत्री... वैसे ही एक सर्जन और एनेस्थेटिस्ट! इनमें भी साथ काम करते-करते एक सामंजस्य... एक लगाव उत्पन्न हो जाता है...” मैंने उसका हाथ थामते हुए कहा।
“इतनी अधिक आत्मीयता कि माही आपत्तिजनक तस्वीरें मानस को भेज रही है?” जया ने रुंधे गले से कहा।
मैंने आश्चर्य से उसे देखा। एक चुप्पी हम दोनों के अधरों से होती हुई दबे पाँव पेड़ों पर चढ़ी और निरभ्र आकाश तक फैल गई।
वह दुप्पटे से आँखें पोंछ रही थी। यह पिकनिक जया का मन बहलाने के लिए प्लान की गई थी लेकिन माही की उपस्थिति ने उसे दुख ही अधिक दे दिया था।
अगले दिन मैं घर में ही बने अपने क्लिनिक के लिए तैयार हो रही थी जब वह आई। आँखें सूजी थी। चेहरा उतरा हुआ। मैं मरीज देखती रही और वह अनमनी सी मैगजीन के पन्ने पलटती रही।
“परी को स्कूल से लेने नहीं जाना क्या?” मैंने समय देखते हुए कहा।
“प्रिया आई है। वह जाएगी।” उसने मेरी तरफ बिना देखे ही उत्तर दिया।
“अब और नहीं सहा जाता।” वह मैगजीन फेंक दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ती हुई बोली।
“मिताक्षी, सच बोलूँ तो सब खत्म ही समझ। ऐसा लगता है कि मुट्ठी में पानी पकड़ने की कोशिश कर रही हूँ, सब छूटता जा रहा है।”
“ हिम्मत रख! सब सही हो जाएगा। पुरुष प्रवृत्ति है थोड़ा बहुत मन का विचलन होता रहता है। पर सात फेरों के बंधन यूँ ही नहीं टूटा करते। यह जो गले में काले मोती पहने हैं न इनमें बहुत ताकत है।” मैंने ढाढस बंधाया।
“रहने दे मिताक्षी! कोई ताकत नहीं। बंधन हैं यह बस! स्त्रियों के गले में पड़ी फांसी ।” वह उठते हुए बोली।
“ अचानक कहाँ चली? बैठ तो! खाना खाकर जाना।” मैंने अनुरोध किया। मैं जानती थी कि इतने व्यथित मन से जाएगी तो वह भूखी ही सो जाएगी।
“दिल तो करता है कि जहर खा लूँ लेकिन परी के कारण...” वह आँसू जब्त करने का प्रयास कर रही थी, “मेरी तो बुद्धि अब काम ही नहीं करती मिताक्षी। चल, चलती हूँ।” आगे बोली।
वह सिसकती हुई तेज कदमों से बाहर निकल गई। सब कुछ इतना अप्रत्याशित था कि मैं जड़वत खड़ी रह गई। चाह कर भी उसे रोक नहीं पाई। यह कुछ कर तो नहीं लेगी न? मैंने खुद से ही प्रश्न किया और अचानक मुझे कुछ कौंधा। मैं जया के पीछे भागी,
“जया रुक तो जरा हाथ दिखा, आज इतनी चूड़िययाँ क्यों पहने है?”
मैंने चूड़ियाँ कलाई पर पीछे खिसकाई और मेरी शंका को सत्य साबित करते हुए ब्लेड के ऐसे निशान वहाँ मौजूद थे जिन्हें मेडिकल टर्मिनोलॉजी में हेजिटेशन वाउंड्स कहा जाता है।
“जया... यह क्या पागलपन है?”
मैंने उसे झिड़का और गले लगा लिया।
“अब कभी नही करूँगी, वादा।” वह मुझे आश्वस्त करते हुए भीगे स्वर से बोली।
“जया, मैं प्रिया को बोल दे रही हूँ वह ले आएगी परी को भी यहाँ! तू इस हालत में घर मत जा। यहीं ठहर।”
“नहीं, प्रिया है न घर पर। तू निश्चिन्त रह।”
वह जाती हुई बोली। कार में ड्राइवर को देख मुझे आश्वस्ति हुई।
तभी सजल घर आ गए थे।
“क्या हुआ। जया कुछ परेशान सी लग रही थी?” वह बोले।
“सुनो! यह माही कैसी लड़की है?”
“मानस से पूछो! मुझे क्या मालूम?” सजल कुछ मजाकिया लहजे में बोले।
“तुम सब के सब एक से हो। तुम तो कह रहे थे कि प्रिया ने गलतफहमी फैलाई और जया बात का बतंगड़ बना रही है। अब माही अपनी तस्वीरें भेज रही है मानस को३. अब बोलो?”
“तुमने देखी क्या?”
“चुप करो। तुमसे बात करना ही बेकार है।” मैं उठकर खाना लगाने लगी।
“अरे, मैंने क्या किया। मुझसे क्यों गुस्सा हो रही हो। मुझे विश्वास नहीं हो रहा है, इसलिए पूछा!”
“बहुत घबराहट हो रही है सजल। जया सच ही बहुत परेशान है। तुम बात क्यों नहीं करते मानस से।” और मैं खुद रोने लगी।
“एक काम करो। तुम जया को फोन कर लो। अभी उसे संभालना है न कि खुद हिम्मत हारनी है।”
मैंने जया को फोन मिलाया। वह घर पहुँच गई थी। मानस की नाइट ड्यूटी थी सो वह अस्पताल में ही था।
“तू हिम्मत रख जया, कुछ भी निर्णय लेने से पहले परी का सोचना। हम सब तेरे साथ हैं।”
मैंने दिलासा दिया। उसकी बहन प्रिया से भी बात की। उसको कुछ दिन रुकने के लिए बोला लेकिन उसे सुबह निकलना जरूरी था।
रात मैंने और सजल ने भी जागते ही बिताई। आज जब हर कोई साल के अंतिम दिन को विदाई देने की प्लानिंग कर रहा था मेरा दिमाग दो साल पहले की न्यू ईयर पार्टी में ही अटका था। जब पता चला कि आगरा डॉक्टर्स एसोसिएशन ने नए साल की पार्टी रखी है तो यह निश्चित ही था कि साथी डॉक्टर्स के साथ पार्टी यादगार होने वाली है। वहीं पहली बार मानस और जया से मुलाकात हुई। पुरुषों की दोस्ती तो जाम और काम की बातें करते ही हो जाया करती है, पर मुझे और जया को पास लाने का काम उसकी गोद में झूलती छोटी सी परी ने किया। एक बेटी की चाहत सदा मेरे मन में रही थी पर प्रभु ने मुझे दो शैतान बेटे ही देना उचित समझा था।
तीन साल की सोती हुई परी को अपनी गोद में लेते हुए मैंने कहा, ‘जाओ जया, तुम भी नए साल के स्वागत में शरीक हो जाओ’, तब कृतज्ञता उसकी आंखों में तैर गई थी। वह मानस के साथ डांस करने लगी। दोनों कितने प्यारे लग रहे थे साथ में। नियति ने नए साल का यह उपहार जो हमें दिया था वह अनजान शहर में हमारी जीवन रेखा बन गया था। अब उनसे मिलना होता रहता उन्हीं के घर माही से भी मुलाकात हुई।
माही और मानस दोनों आगरा के सरोजिनी नायडू मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजिडेंट थे। समय मिलने पर बाहर प्राइवेट अस्पताल में भी मरीज देख लेते थे। वहीं सजल और मैं प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे थे। माही के पति की कुछ वर्ष पूर्व हृदयाघात से मृत्यु हो चुकी थी। दोनों बच्चों के साथ माही हॉस्टल में रहती थी। जया के हाउसवाइफ होने के कारण जया माही के बच्चों को अक्सर ही अपने पास बुला लेती।
एक दिन मैंने कहा भी था-
“जया, यह माही तुझे कुछ अजीब नहीं लगती? तू यहां रसोई में लगी रहती है और यह मानस के साथ एक ही थाली में खाती रहती है।”
“अरे नहीं”,
वह हंस कर बोली,
“यह ऐसी ही है। जानती है इनकी दोस्ती कैसे हुई। माही एक दिन इनके डिपार्टमेंट में चली आई। बोली डॉ. मानस या तो हम दोनों में से किसी एक को अपना नाम बदल लेना चाहिए या एड्रेस एक कर लेना चाहिए, नहीं तो आपके लेटर मुझे और आपको मेरे यूं ही मिलते रहेंगे। माही का नाम मानसी है।”
“ओहो! अजब संयोग है”,
मैंने कहा और एक नजर बाहर डाइनिंग टेबल पर बैठे मानस और माही उर्फ मानसी पर डाली।
मानसी बहुत मिलनसार थी। अधिकतर हम सब साथ घूमने जाते। बच्चों के छोटा होने के कारण चूँकि मैं केवल एक निश्चित अवधि में ही मरीज देखती थी तो जया और मैं अपेक्षाकृत अधिक समय साथ बिता पाते। ऐसी ही एक दुपहरी हम दोनों नेल पेंट सूखने का इंतजार करते हुए,अमृता प्रीतम और साहिर के संबंधों का विश्लेषण कर रहे थे, तभी उसकी बहन प्रिया का फोन आया। वह कानपुर मेडिकल कॉलेज से स्त्री रोग में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही थी और आजकल ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टिट्यूट में एक कॉन्फ्रेंस में भाग लेने गयी हुई थी। जया ने नाखूनों को बचाते हुए फोन का स्पीकर ऑन किया,
“दीदी तू ठीक है न?”,
प्रिया का चिंतित स्वर सुनाई दिया।
“हां! मुझे क्या हुआ, परेशान क्यों है?,
जया ने पूछा।
“दीदी सुन- मतलब तू और जीजा जी साथ खुश हो न?”
“ऐसे क्यों बोल रही है?”,
जया ने फोन उठाते हुए मेरी तरफ देखा। मैं भी अब सजग हो कर सोफे से उठ सीधे बैठ गई।
“दीदी, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा। कल रात से तुझे फोन करना चाह रही थी। कल डिनर के बाद जब हम सभी रेजिडेंट्स यूँ ही साथ बैठे थे और डॉक्टर के अफेयर्स की बात चल पड़ी तब लखनऊ से आई डॉक्टर स्वरा बोली कि आगरा में भी एक डॉक्टर मानस और माही का अफेयर चल रहा है जबकि दोनों ही के बच्चे भी हैं। वह तो यह भी बोली कि माही के पति की मौत भी संदेहास्पद परिस्थितियों में ही हुई थी। शायद इन दोनों ने ही मिलकर कुछ किया था। तू पता कर दीदी। मैं मम्मी- पापा को भेजूं क्या? प्रिया परेशान बोले जा रही थी और जया शून्य में निहार रही थी।”
“हैलो ..दीदी ..हैलो!”
“जया३.!”,
मैंने उसे हिलाया।
“तू क्या बकवास कर रही है प्रिया! जानती है न लोगों को शौक है बातें बनाने का। मानसी का पति चार साल पहले मर चुका है। तब हम मानसी को जानते तक नहीं थे। मानस कैसे मार सकता है उसे?”
“दीदी आई एम सॉरी, लेकिन मुझे बहुत घबराहट हुई। मैं तो यह भी नहीं बता पाई कि वह मेरे जीजू हैं। मुझे बहुत डर लग रहा है।”
“कुछ डरने की बात नहीं। बस तू उस लड़की से दूर रह। अफवाह फैलाने वालों को सजा का प्राविधान क्यों नहीं है। तू फोन रख मैं मानस से बात करती हूं।”
“देख तो मिताक्षी कैसे लोग हैं?”,
जया का चेहरा गुस्से से लाल था
“हम्म”,
मैंने कहा था।
“हम्म क्या, तुझे यह सब सच लग रहा है?”
“प्रिया को बोल कि बिना परिचय दिए उससे बातों-बातों में पूछे कि वह यह सब कैसे जानती है। वह तो लखनऊ की है न?”
“हाँ बोलती हूँ। कुछ आधार भी तो हो कि बस यूं ही बकवास किये जा रही है।”
“यही मैं सोच रही हूं जया कि बिना किसी व्यक्तिगत दुश्मनी कोई किसी को व्यर्थ बदनाम क्यों करेगा?”
अब वह भी सोच में थी।
“तुझे भी शुरू में संदेह हुआ था न, माही! तुझे कुछ मालूम था क्या?”,
जया ने मेरी आँखों मे झाँका।
“नहीं, वह इतनी घुली-मिली थी तुम्हारे परिवार में इसलिए लगा। देख, प्रिया क्या बताती है।”
जितना अधीर हम हो रहे थे उतनी ही शायद प्रिया भी थी। जल्दी ही उसका फोन आ गया। जया ने स्पीकर पर ही लगाया।
“दीदी, स्वरा ने बताया कि जीजू और मानसी दोनों ने नागपुर से साथ ही एम.बी.बी.एस. किया था। पोस्ट ग्रेजुएशन में अलग हुए और कॉन्फ्रेंस, वर्कशॉप आदि में मिलते रहे। सब का मानना है कि इन दोनों ने ही कोई ऐसा इंजेक्शन मानसी के पति को दिया जिससे उसे नींद में ही हार्ट अटैक आया और पहले मानस और बाद में मानसी ने आगरा ज्वाइन कर लिया। मुझे तो अब सच में डर लग रहा है। तुम मम्मी-पापा से बात कर लो।”
“नहीं तू घबरा मत। पापा को कुछ मत बोल। वह पहले ही बीमार हैं, मुझे देखने तो दे पहले कि कितना सच है।”
“ध्यान रखना अपना दीदी, चिंता रहेगी”,
प्रिया ने फोन रखते हुए किसी बड़े की तरह हिदायत दी। समय आने पर सम्बन्ध अपना ओहदा बदल लेते हैं। सोचते हुए मेरा मन भीग गया।
“चल चलती हूं, मानस भी आने वाला होगा लंच के लिए। आराम से बात करना”,
मैंने कहा।
मानस से बात की तो वह बहुत हंसा। बोला,
“मिलना होगा इन स्वरा जी से। हां, एम. बी. बी. एस. में साथ थे नागपुर में लेकिन कभी बात भी नहीं होती थी और अगर कुछ होता तो तभी शादी न कर लेते?”,
उसने उल्टा प्रश्न किया जिसका उत्तर स्वरा की कहानी को झूठा साबित कर रहा था।
कुछ दिन उलझन रही लेकिन फिर सब पहले जैसा हो गया। जया दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी। मानस उसका पूरा ध्यान रखता। माही भी सदा एहतियात बरतने और पोषण का ध्यान रखने की सलाह देती। बीच-बीच में कुछ उड़ता-उड़ता सुनने को मिल भी जाता तो लगता अफवाह जंगल के आग जैसी होती हैं। एक मुंह से निकली है तो हर कान तक पहुंचेगी जरूर और फिर कुछ और मसाले के साथ अगला सफर शुरू हो जाएगा। हम लोग भी अब यही सोचते थे कि एक विधवा स्वाभिमान के साथ अपने पुरुष मित्र के साथ हंस बोल रही है, यही लोगों को दर्द पहुंचा रहा है बल्कि अब वह दोनों ज्यादा हंसते तो हम छेड़ देते कि पर्चे बंट जाएंगे शहर में।आज जया ने जो कुछ कहा वह कल्पनातीत था। यह सब सोचते हुए अस्पताल पहुंची तो आगे मानस जाता दिख गया। बेध्यानी में पुकार बैठी,
“मानस!”,
वह पलटा।
“हे मिताक्षी! गुड मॉर्निंग डिअर। आ रहे हो न आज रात न्यू ईयर पार्टी में”,
वह अपने उसी चिर परिचित अंदाज में मिला।
“मानस, घर गए थे क्या?”
“नहीं, ड्यूटी से सीधा यही आया। परेशान हो? क्या हुआ?”
“माही के साथ सच में कुछ चल रहा है क्या तुम्हारा”,
मैं शब्दों को संभाल पाती इससे पहले ही वह पूरी निर्ममता और बेबाकी के साथ बोले जा चुके थे। यूँ भी मानस से मेरा सदा बेतक्कलुफी का ही रिश्ता रहा। एक बारगी उसके चेहरे का रंग उतर गया था या मुझे ही ऐसा प्रतीत हुआ। “अब कोई नई अफवाह सुनी क्या?”,
अपने बालों पर हाथ फेरते हुए वह बोला।
“अफवाह तस्वीर बन जाए तो हकीकत कहलाएगी न और वह भी न्यूड? कर क्या रहे हो तुम लोग कुछ अंदाजा भी है?”,
बोलते हुए लगा जैसे मुँह में कुनैन घुल गयी हो।
मानस की नसें तन गईं। वह कटु स्वर में बोला,
“देखो मिताक्षी, तुम स्वयं एक डॉक्टर हो। जया की अवस्था ऐसी है वह बहुत संवेदनशील और भावुक हो गई है फिर यह इधर-उधर की अफवाहें३. बेहतर होगा तुम उसकी बातों में आकर मेरी उलझन न बढ़ाओ!”
“मानस तुम जानते हो कि मैंने हमेशा तुम लोगों का भला ही चाहा है लेकिन ऐसी तस्वीरें साझा करना३ पति-पत्नी भी संभवतरू ऐसा नहीं करते!”
“तुम पागल हुई हो क्या मिताक्षी! अब क्या कहूं तुम्हें, जया अजीब हरकतें कर रही है। व्हाटस एप पर लड़के भेजते रहते हैं एक दूसरे को ऐसी तस्वीरें। उसे पता नहीं कैसे वह माही की लगी!”
“वो माही को नहीं पहचानेगी क्या?”,
मैंने प्रतिवाद किया।
“तुम मत मानो, उसी से पूछ लो। ऐसा कुछ होता तो मै फोन लॉक नहीं रखता क्या और फिर फोटो क्यों? माही और मुझे मिलने को अवसरों की कमी है क्या?”,
वह झल्ला गया था।
मुझे उसकी बातों में भी तथ्य लगा। मैंने कहा,
“कुछ समझ नहीं रहा मानस लेकिन जया बहुत परेशान है, ध्यान रखो। गर्भावस्था में अक्सर स्त्रियां अवसाद का शिकार हो जाया करती हैं। ऐसी अवस्था में उसे अतिरिक्त स्नेह और देखभाल चाहिए।”
“मैं पूरी कोशिश कर रहा हूं उसको खुश रखने की। तुम भी समझाना”,
कहकर हमने एक दूसरे से विदा ली।
शाम को न्यू इयर ईव की पार्टी अपने पूरे शबाब पर थी। जया जरूर कुछ बुझी-बुझी सी थी। वह और मैं भीड़ से अलग एक कोने में परी को लेकर बैठे थे। जया की नजरें मानस पर टिकी थी। बीच-बीच में माही को भी देख लेती। जब माही और मानस साथ डांस करने लगे तो उसने नजरें फेर ली। मुझे लगता है तुझे गलतफहमी हुई होगी अगर कुछ हो भी दोनों के बीच तब भी इतना बड़ा पागलपन तो नहीं ही करेंगे
“हम्म”,
वह कुछ खोयी-सी ही बोली।
“और रुकना है क्या या चलें”,
वह अनमनी सी खड़ी हो गई।
मैंने मोबाइल देखा। नए साल के स्वागत में दस मिनट बचे थे।
“बस दस मिनट की बात और है जया”,
मैंने बोला।
“घबराहट हो रही है”,
वह बोली।
“मैं बोलती हूं इन लोगों को, तू बैठ”,
मुझे आता देख सजल खुद ही डांस फ्लोर से उतर आए। मैंने जया की तबीयत का बताया।
वह मानस को बुलाने गए। मानस तुरंत आया। वह भी चिंतित लगा।
“माही को आप लोग हॉस्टल ड्राप कर दीजिएगा, मैं जया को घर ले जा रहा हूं”,
वह बोला।
“हम भी चलते हैं साथ”,
मैंने कहा।
“नहीं कोई बात नहीं,मैं सोना चाहती हूं”,
जया बोली।
मानस ने परी को गोद में ले लिया। मैं जया का हाथ पकड़कर उसे बाहर ले जाते हुए देख रही थी। केक काटने के तुरंत बाद ही हम भी माही को हॉस्टल छोड़ते हुए घर आ गए। सुबह कुछ देरी से सो कर उठी तो सजल रसोई में चाय बनाते मिले मुझे। बोले,
“जया को एयरलिफ्ट कराना पड़ा। रात को मेदांता ले गए हैं”,
“क्या?”,
मेरे पैरों के नीचे से जमीन सरक गई।
“हां, तीन बजे इमरजेंसी आई थी, तो हॉस्पिटल जाना पड़ा। वहीं डॉ सुदेश ने बताया कि अभी-अभी जया को दिल्ली रेफर किया है।”
“मानस ने हमें फोन क्यों नहीं किया?”
“क्या पता! डॉ सुदेश के पास ही लेकर आया रात को।”
“मुझे जाना है दिल्ली!”,
मेरे आंसू बह निकले थे। जया का चेहरा आंखों के सामने था । दोनों बच्चों को साथ ले हम सुबह 8रू00 बजे दिल्ली के लिए निकल गए। रास्ते अपेक्षाकृत खाली थे। हमें देख मानस टूट गया। रोने लगा। सजल उसे और बच्चों को साथ लेकर कैंटीन में कुछ खिलाने चले गए। मैं आई. सी. यू. में जया के पास उसका हाथ पकड़ कर बैठी थी। उसने आंखें खोली,
“मिताक्षी”,
“हां जया, मैं हूं, क्या हो गया रे, तू तो बोली थी थकी हूं, जाकर सोऊंगी और फिर सब को जगाए रखा”,
मैंने उलाहना दिया।
“रात ऐसा लगा जैसे कुछ चुभा। आंखें खुली तो मानस खड़ा था पास। मैंने पूछा क्या इंजेक्शन दिया तुमने तो बोला तुम सो नहीं पा रही थी नींद का दिया। उसके बाद हाथ पैरों में जैसे लकवा मार गया हो।
“अब कैसा महसूस कर रही है?”.
“बेहतर हूं”,
मैंने एक नजर सामने लगे मॉनिटर पर डाली जो जया की बात का समर्थन कर रहे थे पर जाने क्यों कितने ही घातक मसल रिलैक्सेंट के नाम मेरे मस्तिष्क में गोल-गोल घूम रहे थे। क्या यह सम्भव है कि मानस ने जानकर यह इंजेक्शन लगाया या अत्याधिक तनाव से जया को विभ्रम हो रहे हैं। सिरे उलझते ही जाते थे। मैं परी को अपने साथ आगरा ले आई क्योंकि उसकी नानी वहीं अस्पताल में रुकी थी। जया के माता-पिता से मुलाकात में मैं समझ रही थी कि उनकी आर्थिक स्थिति कुछ अधिक अच्छी नहीं है। दो दिन बाद जया मौत के मुंह से बच वापस आ गई थी लेकिन गर्भस्थ शिशु यह प्रहार सहन न कर सका था वह जंग हार गया था।
समय के साथ अवसाद बढ़ता जा रहा था और उसका मानस और माही के रिश्तों पर शक भी। सदा हंसी मजाक करते रहने वाला मानस भी अब जब भी मिलता बुझा-बुझा सा लगता। मैंने कहा बेहतर हो कि जया को मानसिक रोग विशेषज्ञ को दिखा दिया जाए पर जया को लगता था कि मानस उसे पागल घोषित करना चाह रहा है।
रिश्तों में तनाव आने से हर हफ्ते बनने वाले सम्मिलित प्रोग्राम अब कम ही बनते पर जया और मैं जरूर पहले से भी अधिक समय अब एक साथ बिताते। उसका मन अच्छा रखने हम कभी शॉपिंग जाते कभी कॉफी हाउस पर वह अधिकतर समय मेरा हाथ थामे मौन ही रहा करती। मैंने उससे कहा कि अगर उसे यकीन है तो अपने मायके भी जा सकती है३ तलाक भी ले सकती है। मां-बाप की चादर कितनी भी सीमित हो, बेटियां उसमें समा ही जाती हैं।
“तुझे क्या लगता है कि मैं मानस के घर की सुख-सुविधा के लिए यहां पड़ी हूँ?”,
मन विपरीत होने पर सामान्य शब्दों के असमान्य अर्थ निकाल लेना मानव स्वभाव है। मैंने जया की बात का बुरा नही माना।
“तुझे लगता है क्या कि मैं तेरे लिए ऐसा सोच सकती हूं३.”, मैंने उसकी आँखों मे झांकते हुए कहा।
ष्...और याद रखना कि मेरे घर के दरवाजे तो सदा तेरे लिए खुले ही हैं।”
“तू समझती नहीं मिताक्षी। मेरे यहां से जाने का मतलब है कि माही की जीत के सभी दरवाजे मैं खुद ही खोल दूं-मैं चली जाऊंगी तब तो वह घर ही आ बैठेगी। फिर मानस अच्छा पति हो न हो, पिता बहुत आदर्श है। परी को कैसे उसके प्यार से वंचित कर दूं , वह नही रह पाती मानस के बिना! सच कहूँ तो रह तो मैं भी नही पाती मानस के बिना”,
जया बुझे स्वर से बोली।
“ऐसा क्यों होता है मिताक्षी ३. हम स्त्रियां वैवाहिक गठबंधन के साथ ही उम्र भर का मनबन्धन भी कर बैठती हैं”,
“स्त्री तो माही भी है”,
मैंने उसाँस छोड़ते कहा।
“एक स्त्री की आंखों के आंसू दूसरी स्त्री की मुस्कान बन जाते हैं३ विचित्र है न?”,
वह तंज से हंसी।
“तुझे क्या लगता है मिताक्षी, वो मानस से मुझसे भी ज्यादा प्यार कर सकती है क्या? या मुझसे अधिक सुंदर है? कोई तो कमी होगी मुझमें जो उसने जगह पायी”,
“है न बहुत बड़ी कमी है तुझमें”,
मैंने कहा।
“क्या -?”,
उसकी आंखें मुझ पर टिकी थी।
“ब्याहता है तू उसकी ३ इतना ही बहुत है तुझमें अरुचि रखने को!”
कहा जरूर पर मन में सोच रही थी कि जिसने जाने की ठान ही ली हो उसे कौन रोक पाया है। अगर जया का शक सही है तब वह मानस का प्यार तो क्या ही पा सकेगी वापस? हाँ, पत्नी के अधिकार से कोर्ट से वित्तीय सहायता के लिए मांग कर सकती है। जया की समस्या बढ़ती जाती थी। मानस ने कहा वह उसे अवसाद दूर करने की दवाईयां दे रहा है पर वह उन्हें खाना नहीं चाहती।
“बेहतर होगा कि तुम शहर ही बदल लो”,
मैंने आखिरी मार्ग सुझाया।
“यह सब इतना आसन है क्या मिताक्षी? हॉस्पिटल के लिए जमीन ले चुका हूँ। इतनी मेहनत से यहाँ पहचान बनाई है। सब जीरो हो जाएगा।”
मुझे अब जया पर भी झुंझलाहट होती। या तो उचित ट्रीटमेंट ले या फिर अलग हो जाए। इस संशय के साथ रहने से तो दोनों ही प्रकार से उसके स्वास्थ्य और जीवन को बड़ा खतरा था। वह अनवरत रोती लेकिन घर छोड़ने को राजी न होती। कोई उपाय न देख मैंने भी उससे कुछ दूरी बना ली थी। मैं उसकी कोई मदद नहीं कर पा रही थी बस अपना मन और भारी कर ले रही थी। मानस से मुलाकात होती तो उसे अवश्य ही जया को और अधिक प्यार और विश्वास देने के लिए कहती रहती।
करीब एक महीना यूं ही निकला होगा और एक और सुबह मैं पुनः जया के सिरहाने अस्पताल में खड़ी थी । उसने ऑक्सीजन मास्क हटाने का इशारा किया और अस्पष्ट स्वर में मानो ‘मानस’ पुकारा। आंखों की कोरों से आंसू बह कर उसके घुंघराले बालों में अटकते जा रहे थे।
“इंजेक्शन-”,
वह बोली।
“मानस ने इंजेक्शन दिया”,
मैंने पूछा।
उसने ‘हां’ में सिर हिलाया।
वह गफलत में थी। कुछ अधिक बोल न पाई। सामने मॉनिटर पर दौड़ती रेखाएं मेरी भी धड़कनें अनियंत्रित कर रहीं थी। यह जया से मेरा आखिरी संवाद साबित हुआ। अस्पताल ने इसे हृदयाघात से हुई मौत ही माना लेकिन अब जाने क्यों मुझे भी मानस पर संदेह पुख्ता होता जाता था। जया के माता-पिता को कोई शिकायत नहीं थी। इतनी बड़ी बात मैं सीधे कह भी नहीं सकती थी। प्रिया से बात की तो वह बोली कि मुझे खुद कुछ समझ नहीं रहा, स्वरा का भी नंबर बदल गया है अब कोई बात नहीं हो पाती। रात जया को महसूस हुई चुभन ज्यों मेरे सीने में धंस गई। वह कुछ बताना चाहती थी, मैं क्यों नहीं समझ पाई?
जाते- जाते अपने सन्देह की वसीयत जया मेरे नाम लिख गई थी। सन्देह या भयावह सच? एक सिरहन दौड़ गई। सच जानने का कोई मार्ग न दिखता था मैंने स्वयं को ही समझाना उचित समझा। बच्चों और घर पर ध्यान देने लगी तभी अप्रत्याशित रूप से तेरहवीं के बाद मानस के आगरा छोड़ नाइजीरिया शिफ्ट होने की खबर मिली। हमसे कोई जिक्र भी नहीं किया था फिर भी रुका नहीं गया, मिलने दौड़े। वह बोला- यहां जया की यादें विचलित करेंगी और जया को बचाने में पानी की तरह पैसा बहाने के बाद भी लोग उसे सवालिया नजरों से देख रहे हैं। मानस की आंखें निर्दोष लग रही थी लेकिन फिर अगले महीने ही जब माही ने भी आगरा मेडिकल कॉलेज छोड़ दिया तो उड़ती-उड़ती खबर मिली कि वह भी नाइजीरिया चली गई है। मेरा मन बहुत कचोटता था। ऐसा लगता था जैसे जया अंत समय मुझसे न्याय की गुहार लगा रही थी कि अपराधी को सजा जरूर दिला देना। चुभन बढ़ती जाती थी। परी की भी चिंता होती। मुझे परी को अपने पास रख लेना चाहिए था पर किस हक से ? जया पर भी गुस्सा आता बस कलपती रही थी कोई ठोस निर्णय न ले पाई, फिर सोचती कभी सजल मुझसे विमुख हुआ तब क्या मेरे लिए सहज होगा कोई निर्णय लेना? असल बंधन समाज और नैतिकता के नहीं लगाव के हैं।
वह फरवरी का एक गुलाबी दिन था जब प्रिया का फोन आया। इंस्टाग्राम पर मानस और माही की बच्चों के साथ फोटो थी। वह कह रही थी कि शायद दोनों ने शादी कर ली है। मम्मी-पापा पुलिस केस करने की सोच रहे हैं। मैंने कहा कि मैं हर तरह से सहयोग के लिए तैयार हूं । तब जो एक आस जगी थी जया को न्याय दिलाने के लिए वह न्याय प्रणाली की मंथर गति के कारण बुझती जा रही थी। मेरी गवाही महत्वपूर्ण थी। बाकी सबूत के तौर पर तो इतने दिनों बाद जया की अस्थियां तक गंगा में बहाई जा चुकी थीं। पुलिस के पास विश्लेषण करने के लिए कुछ था ही नहीं। शहर के मेडिकल समुदाय में एक बार फिर इस खबर ने हलचल मचा दी कि मानस और माही ने वापस आगरा आकर अपना अस्पताल खोल लिया है। मैं हैरान थी कि क्या पुलिस का भी डर नहीं, या सच ही वह निर्दोष हैं और अपनी सत्यता के लिए आश्वस्त।
कुछ लोगों का कहना था कि मानस अपने इतने वर्षों के सम्बन्धों के दम पर अस्पताल यहां ही बेहतर चला सकता था। इसमें दो राय नही थी कि आगरा से दूरदराज के गांवों तक भी मानस के पास मरीज लाने वाले कई दलाल थे जो उसे देवता मानते थे।
डॉक्टर तीन समुदाय में बंटे दिखे। एक वो जो दूरी बनाए थे। दूसरे जो देख रहे थे कि अन्य क्या कर रहे हैं और तीसरे जिन्हें काम की जरूरत थी। उनके लिए किसी के अतीत से उनका खुद का भविष्य अधिक महत्वपूर्ण था। सबसे पहले उनका संबल यही वर्ग बना और जल्द ही दूसरा वर्ग भी औपचारिक हाय- हैलो करता नजर आया। पहले समुदाय की संख्या धीरे-धीरे कम होते तब शून्य हो गई जब माही और मानस के साथ परी को सहज और खुश देख मैंने भी मान लिया कि शायद अवसाद के कारण जया ने कुछ अधिक ही भ्रम पाल लिए थे। तीव्र उत्कंठा होती कि परी को अकेले में बुला उसकी कुशल-क्षेम पूछूं। जिस स्त्री ने एक विवाहित पुरुष को वश में कर लिया उसके लिए एक बच्ची को बहलाना क्या कठिन था? लेकिन एक तो ऐसा अवसर ही न मिलता और दूसरा एक अबोध बच्चे के मन में संशय के बीज आरोपित करने के दुस्साहस को मेरी अंतरात्मा अनुमति न देती। मानस अब कुछ कम बात करता लेकिन माही पहले की ही तरह बेतकल्लुफी से जोश के साथ मिलती। तीनों बच्चों के किस्से सुनाती। परी, अंश और अंकुर बिल्कुल सगे भाई-बहन जैसे लड़ते-झगड़ते और प्यार करते दिखते।
“तुम जाओगी क्या? कल डेट है कोर्ट की”,
सजल ने पार्टी से लौटते हुए मुझसे पूछा।
“क्या फायदा! चार साल में लोअर कोर्ट से भी तो निकल नहीं पाया केस। जया के मम्मी-पापा खुद भी अब हार मान चुके हैं। बोल रहे थे जया तो वापिस आएगी नहीं, प्रिया के दहेज की रकम भी चूकती जा रही है।”
“तुम्हें नहीं लगता कि अगर यह केस जीत भी जाए तो परी से उसका पिता भी छिन जाएगा और माही के साथ भी परी खुश ही दिखती है”,
सजल ने कहा।
“मेरे मन की बात कह दी तुमने। आज जब परी और अंश मिलकर माही के बालों में फूल लगा रहे थे तब मैं भी बिल्कुल यही सोच रही थी। परी को जाने जया की कोई स्मृतियां हैं भी या नहीं।”,
मन बेहद तरल होता है जिधर का ढलान हो उधर ही बह निकलता है। आगरा का मेडिकल समुदाय भी जया को विस्मृत कर चुका था। अब मानस और माही की जोड़ी राम और सीता के सदृश थी। फेसबुक पर उनकी तस्वीरों पर ‘परफेक्ट कपल’ और ‘मेड फॉर इच अदर’ लिखा देखने की आंखें अभ्यस्त हो चुकी थी।
जीवन यथावत चलायमान था। प्रेम-अप्रेम के मानकों को सदा परखते इस शहर की यह एक घुटन भरी सुबह थी। ताजमहल का रंग और धूसर प्रतीत होता था। जब अखबार के मुख्य पृष्ठ पर छपी इस खबर ने देवता समझे जाने वाले एक डॉक्टर के देवारि होने की पुष्टि कर दी थी -
श्हर के प्रख्यात अस्पताल देवम के संचालक डॉ मानस और डॉक्टर मानसी को पूर्व पत्नी जया की हत्या की साजिश में गुनहगार पाया गया। डॉ. मानसी ने पुलिस को समर्पण किया। डॉ. मानस हुए फरार।श्
मैं सोच रही थी कि शायद इसीलिए कानून की आंखों पर पट्टी बांधी गई है जिससे वह समय के साथ बदलते समीकरणों से उपजी भावनाओं से प्रभावित न हो। परिवार और मित्रों को अपने मोहक जाल में मानस और माही ने काफी हद तक फंसा भी लिया था लेकिन जया के नाम पर कराया गया एक करोड़ रुपयों का इंश्योरेंस मानस को भारी पड़ गया था। इंश्योरेंस कंपनी के वकीलों के लिए संवेदनायें महत्वहीन थी और उनकी व्यवसायिक और व्यवहारिक समझ मानस से कई गुना बेहतर। वह जानते थे कि शादी के सात साल बीतने पर भी विवाहिताओं के सिर से मौत का खतरा टलता नहीं है।
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