Saturday, April 23, 2022

अपनी चाय की चुस्की भरो धीरे_धीरे/ मज़े से : प्रोफ: ली तसु पेंग

अनुवाद: सुजाता

कोई नहीं जानता
कब रुखसत का समय आ जाए और उस मौज को जीने का समय ही न मिले
तो बसअपनी चाय की चुस्की भरो
सुकून से/ धीरे _धीरे
_
जीवन बहुत छोटा है
मगर लगता बेहद लंबा
बहुत कुछ है करने को
क्या सही क्या गलत
उलझे रहते तुम इसी में
इससे पहले कि देर हो जाए और  
अंत समय आ जाए
अपनी चाय का मज़ा लो
घूंट_घूंट
_
चंद दोस्त शेष रहते

कविताएँ : अरतिंदर संधू

 

कुदरत के रंगों का जलाल था 

बराबरी थी,एकरसता थी 

पेड़ थे,बूटियाँ थी

स्थान था हरेक वस्तु का

कुदरती रचना थी 

नर और मादा होने की

बिलकुल उतने ही बराबर थे सब

जितना बराबर था होना उनका 


मनुष्य का आना धरती पर

ले कर आना था 

विशेष क़िस्म की समझदारी 


समझदारी ने की कुछ बाँटें 

निश्चित किये स्थान 

सब जीव निर्जीव वस्तुओं के

बंट गया तथ्य होने रहने का

नर और मादा होने में 

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता

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