सम्पादकीय:

चलो कुछ सुने … कुछ कहें….


जतिन्द्र औलख

जीवन मे अनेक बार एक ठहराव सा महसूस होता है। तरीकें, वर्ष बदलते जा रहे हैं। समय बह रहा है।  युग तेज़ी से बदला है रहन-सहन और ज़िन्दगी और समाज से जुड़े विभिन्न संकल्प और मान्यताएं भी बदली हैं। 

आज मानव ने फिर से सोचना शुरू किया है की जीवन जीने के लिए बस धन-दौलत और सुख-सुविधाएँ ही काफी नही है बल्कि आज मानव जीवन से छिन चुका सकुन फिर से हासिल करना चाहता है। 

'योगा' और 'बोधिसत्व' फिर से महानगरीय जीवन को अपनी तरफ आकर्षित कर रहा है।  धर्म अपने नए अर्थों और स्वरुप में सजग हो रहा है। 

ऐसे में साहित्य से जुड़ने की सबसे अधिक आवश्यकता महसूस होती है।  शोशल मीडिया ने साहित्य पत्रों को काफी प्रभावित किया है। साहितय रचनाओं की उत्तमता भी प्रभावित हो रही है। 

ऐसे में चिन्ताशील और प्रगतिशील साहित्य पत्रों की आवश्यकता और भी है । साहितय ही तेज़ी से बदल रही समाजिक चाल का अध्य्यन कर आधुनिक मानव की आगवानी हो सके। मेघला का प्रिंट एडिशन कुछ समय से बंद है। अब फिर से मेघला का ऑनलाइन एडीशन शुरू है। 

आशा करता हूँ आप मेघला को देश की माणिक पत्रकाओं में शुमार करने में सहयोग देंगे। आपके राय हमारे किए अत्यन्त महत्वपूर्ण है।  आपकी सुंदर रचनाओं का इंतजार रहेगा।… चलो कुछ सुने … कुछ कहें….



1 comment:

  1. साहित्य समाज का दर्पण होता है लेकिन इस दर्पण को समाज सामने रखने का कार्य प्रकाशन करता है आपका हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए बधाई और शुभकामनाएँ प्रस्तुत करता हूँ। 🙏

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