ऊपर बैठे आकाश ने भी उनकी हां में हां मिलाई। हवा, पानी, ज़मीन बोले, तुम तो मज़े में हो भई, इंसान के हाथ तुम तक नहीं पहुंच सकते।
आकाश ने अपने दिल में हुआ बड़ा सा छेद दिखाते हुए कहा, तुम्हें शायद मालूम नहीं कि इंसान के स्वार्थ की लपटें कितनी ऊपर तक पहुंच रही हैं।भट्टी में धू –धू जल रहे हैं पुतले, किसी दिन इन्हीं लपटों का शिकार हो जाएगा वह। खतरे का बिगुल बज रहा है और काला धुआं फैलता जा रहा है।
पानी के चेहरे पर उदासी की लकीरें साफ़ दिखाई दे रही थीं। हवा ने पूछा–क्या बात है भाई? मेरा दर्द बहुत पुराना है–पानी बोला ,बरसों से इंसान मेरा खून चूस रहा है।वह जल–भक्षी हो गया है, इतना स्वार्थी कि मेरे शरीर की आखिरी बूंद तक निचोड़ लेना चाहता है।अब और बर्दाश्त नहीं होता।
पानी की दुःख भरी कहानी सुन कर हवा की आंखें भीग गईं –मेरी भी दास्तां कुछ ऐसी ही है भाई।