नाम~ शकुंतला अग्रवाल "शकुन", लघु कथा,व छांदसिक रचनाएँ ।
प्रकाशित कृतियाँ- 1.दर्द की परछाइयाँ (2017),
2. "बाकी रहे निशान" दोहा संग्रह( 2019) ,
3."काँच के रिश्ते" दोहा संग्रह(2020),
4."भावों की उर्मियाँ" कुंडलियाँ संग्रह (2021) 5. 'लघुकथा कौमुदी' लघुकथा संग्रह(2022)
व अनेक साझा संग्रह
प्रकाश्य:-घनाक्षरी,गीत, कविता व एकांकी संग्रह।
सम्मान व अलंकरण - हिंदी दिवस पर जिला साहित्यकार परिषद भीलवाड़ा द्वारा "साहित्य सुधाकर"-2018
विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा~ 'विद्यावाचस्पति' सम्मान-2018 में
द्वारकेश साहित्य परिषद कांकरोली द्वारा सम्मानित- 2019, काव्यांचल ग्रुप- 'छंद-रथी'-2019, व फरवरी 2020 में दोहा शिरोमणि सम्मान व अन्य कई सम्मान।
दोहा
छंदाधारित गीतिका
मैं मूरख कैसे करूँ, शिव जी का गुणगान?
शब्द पड़े हैं मौन सब,नहीं छंद का ज्ञान।
*
नश्वर जग में हो तुम्हीं,सबके तारणहार,
जान गया इस सत्य को,वो सच्चा- इंसान।
*
पग-पग पर धोखे यहाँ,कैसे हो विश्वास?
परख सके सबको 'शकुन',ऐसा दो संज्ञान।
*
माया डसती नित यहाँ, घायल होती रूह,
जपूँ तुम्हारा नाम मैं, करूँ सुधा का पान।
*
कोई चाहत अब नहीं,बाकी मेरी आज,
मन में मूरत है बसी,चरणों में है ध्यान।
*
झूठे रिश्ते सब यहाँ, झूठी सबकी प्रीत,
भक्ति बिना जीवन लगे, जैसे रेगिस्तान।
*
पाकर शुभ आशीष मैं, पगली मालामाल,
आज हुए पूरण यहाँ, मेरे सब अरमान।
2
जिनको पहनाते रहे, प्रीत भरे हम हार।
छोड़ रहे हरपल वही,नफरत के गुब्बार।
*
कतरा-कतरा बह गए,दिल के सब अरमान,
कसम वफा की खा वही,तोड़े सभी करार।
*
गिरगिट- सी निकली वफा,क्षण में बदला रंग,
मतलब के रिश्ते सभी,मतलब का है प्यार।
*
दल-दल में धँसते गए,जब अपनो के पाँव,
मन में कैसे फूटती, प्रीत- भरी रस -धार?
*
अपने से ज्यादा किया,जिस पर भी विश्वास,
निज-हित के पलते वही,निकल गया गद्दार।
*
दुनियादारी का रखा,जिसने भी संज्ञान,
हो जाती भवसिंधु से,उसकी नैया पार।
*
हो जाएगा सत्य से, जीवन-पथ आसान,
'शकुन'बना ले भक्ति को,जीवन का आधार।
3
वैरी के पाहुन बने, बैठे है जयचंद।
कैसे सजते भाल पर,देशभक्ति के छंद।।
घूम रहे है भेड़िए, पहन मनुज की खाल,
कर देना उनके लिए, तुम दरवाजे बंद।
जिनका मन नापाक है, दूषित रखे विचार,
ऐसे जन देते नहीं,मन को कुछ आनंद।
बात अहिंसा की इन्हें, समझ न आती यार,
नरभक्षक को मत पिला, प्रीत-भरी मकरंद।
आतंकी के वास्ते, नियम रखें बस एक,
मृत्यु दण्ड दे कर इन्हें, दें फाँसी का फंद ||
'शकुन' समझना मत कभी,दुश्मन को कमजोर,
देते है मौका वही,होते जो मतिमंद।
'घर'अपनों से ही जले,चौकस रहना मीत,
बुद्धिमता से काम लो,मिट जाएँ सब द्वंद।
4
नाजों से पाला जिसे, देखे मुझमे खोट।
आँख तरेरे अब वही, मन पे लगती चोट।
*
मृतप्राय हो गया,मर्यादा का पेड़,
रिश्ते नाते ताक धर, भाए सबको नोट।
*
राजनीति अंधी हुयी, करती सत्यानाश,
सरेआम अब हो रही,धन की लूटखसोट।
*
अदहन से उबले सभी, पल में खाए तैश,
नफरत के बारुद से, रिश्तों पर विस्फोट।
*
मतलब के नेता सभी, मतलब के सब यार,
सोच समझकर डालना,भाई,बहनों वोट।
बैठे पहरेदार ही, घात लगाए आज,
घोटालों की अब सभी,भाँग रहे हैं घोट।
निर्धन का चूल्हा 'शकुन', बहा रहा है अश्रु,
नेता सारे खा रहे,काजू औ अखरोट।
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