मां हाथ में एक रुपए का सिक्का लिए बाज़ार निकली।बच्चे की ललचाई आंखें सिक्के पर टिकी थीं–मां! आते समय कुछ लेते आना।राशन की दुकान पर लाइन लगी थी, ताक –झांक करने के बाद वह आगे बढ़ गई।मिठाई की दुकान पर मात्र भाव पूछा।आगे चौराहे पर नसीहतों की नीलामी हो रही थी,उसने सिक्का दे कर एक नसीहत खरीद ली "सहनशीलता अमूल्य
धन है।" घर जा कर खुशी –खुशी नसीहत बच्चे के हाथ में थमा दी।बच्चा ज़िद्द करने लगा मिठाई,खिलौने–मां ने उसे चपत रसीद की।वह रो पड़ा और सूनी आंखों से खाली हथेलियों को देखता रहा।नसीहत ज़मीन पर गिरी पड़ी थी।
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