Saturday, February 1, 2025

रीतू कलसी की कुछ कविताएं

 

हम और तुम

भले चाहें  युद्ध न हों

पर युद्ध होंगे 


और मरना किसे 

इस युद्ध में यकीनन

हमको तुमको


नेता आए,नेता गए 

दर्ज हुआ युद्ध इतिहास मे


तो युद्ध होंगे

इतिहास मे आने को


तो आओ हमतुम 

रो ले उस मां  संग

जिसका बच्चा मरा 

युद्ध में


क्योंकि यह युद्ध तो होंग


तुम्हे सामने बिठा

बिना बोले सुने

निहारना चाहती हूं


 तुम्हें 

भीगे कागज़ पर

कविता की तरह 

उतारना चाहती हूं


काश यादें भी

दिवाली की सफाई के साथ 

हो जाती साफ

या दीवारों को रंगे जाने की तरह

दब जाती नए रंगों के नीचे

हमेशा के लिए छुप जाने के लिए

काश इन्हे भी दीवार पर से

पुराने रंग को खुरच खुरच कर

निकाले जाने की तरह निकाला जा सकता

पर यह यादें बड़ी जिद्दी सी हैं

उस सीलन भरी दीवारों की तरह 

जो रंगे जाने के कुछ दिन बाद ही

 नीचे से उल्ली लग जाने की तरह

 फिर से निकल आती है

जाती नही तब तलक 

जब तक ढहा न ले अपने साथ पूरे अस्तित्व को


 विकल्पहीन हूँ

और अपनी मर्ज़ी से

इस राह पर बढ़ी हूँ

जहाँ से सारे रास्ते बंद हो जाते हैं,

तुम्हारे पास तो तमाम विकल्प हैं

फिर भी जिस तरह तुम

ख़ामोशी से स्वीकृति देते हो

बहुत पीड़ा होती है

अवांछित होने का एहसास दर्द देता है,

शायद मुझसे पार जाना कठिन लगा होगा तुम्हें

इंसानियत के नाते

दुःख नहीं पहुँचाना चाहा होगा तुमने

क्योंकि कभी तुमसे तुम्हारी मर्ज़ी पूछी नहीं

जबकि भ्रम में जीना मैंने भी नहीं चाहा था,

जानते हुए कि

सामान्य औरत की तरह मैं भी हूँ

जिसको उसके मांस के

कच्चे और पक्केपन से आंका जाता है

और जिसे अपने सपनों को

एक एक कर ख़ुद तोड़ना होता है

जिसे जो भी मिलना है

दान मिलना है

सहानुभूति मिलनी है

प्रेम नहीं




1 comment:

  1. रीतू कलसी जी की कविताएँ हर बार ज़िंदगी की उन अनुभूतियों को अभिव्यक्ति देती हैं जो अनुभूतियाँ न तो आसान होती हैं और न ही सबकी किस्मत में भी---उनका दर्द--उनकी ख़ुशी सभी कुछ का अहसास रीतू की कवितायों में मिलता है---!

    रेडियो और प्रिंट मीडिया में उनका अनुभव इस अनुभूति को भी विराट स्तर पर ले जाता है और अभिव्यक्ति को भी--कविता और पत्रकारिता का समन्वय उनकी रचना को बहुत नए रंग भी देता है--बहुत से नए आयाम भी--!

    युद्ध तो होंगें ही--इस को भविष्यवाणी की तरह कहते वक्त शायरा रीतू को सब मालुम भी होता है--कौन कौन लोग हैं जो रचते रहते हैं साज़िशें--युद्ध उनका कारोबार भी है और ज़रूरत भी--- फिर भी इसका शिकार होने वाले कहां समझ पाते हैं--!

    इसी तरह बिना बोले तुम्हे निहारने की इच्छा--आजकल शायद गायब सी ही हो गई है..बहुत अनमोल सी यह इच्छा और इसका उल्लेख रीतू जैसे संवेदनशील कलमकार ही कर सकते हैं--!

    अवांछित होने के दर्द का अहसास--प्रेम और सहानुभूति के अहसास की बात---सूक्ष्म भावनायों को खूबसूरती से सामने लाती हैं..!

    बहुत बड़ी बात है इन पंक्तियों में भी---!

    सामान्य औरत की तरह मैं भी हूँ
    जिसको उसके मांस के
    कच्चे और पक्केपन से आंका जाता है
    और जिसे अपने सपनों को
    एक एक कर ख़ुद तोड़ना होता है
    जिसे जो भी मिलना है
    दान मिलना है
    सहानुभूति मिलनी है
    प्रेम नहीं

    उम्मीद है मेघला भविष्य में भी रितु जी की रचनायों को सामने लाती रहेगी---!

    इस शानदार साहित्यिक पत्रिका के सफल संचालन के लिए सभी प्रबंधकों भी हार्दिक बधाई--!

    स्नेह और सम्मान के साथ
    रेक्टर कथूरिया

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रीतू कलसी की कुछ कविताएं

  हम और तुम भले चाहें  युद्ध न हों पर युद्ध होंगे  और मरना किसे  इस युद्ध में यकीनन हमको तुमको नेता आए,नेता गए  दर्ज हुआ युद्ध इतिहास मे तो ...