चन्द्रेखा ढडवाल जी की काव्य पुस्तक 'ज़रूरत भर सुविधा'मु झे अमृतसर में रह रही हिमाचल मूल की कवित्री सुजाता जी से प्राप्त हुई। यह पुस्तक मुझे देते हुए उन्होंने इसे पढ़ने के लिए भी कहा। लेकिन और झमेलों ने मुझे ऐसा उलझाया की लगभग दो महीने यह पुस्तक मेरे ट्रैवल बैग में पड़ी मेरे साथ-साथ सफ़र करती रही।फर मैने इस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो एक एक कर सारी कविताएं पढ़ डाली। मैने इस पुस्तक के सरवर्क को काफी देर निहारा लेकिन मुझे इसकी समझ नहीं आई। लेकिन एक बात मेरी समझ में आ गई की सूक्ष्म कला बारीक बुद्धि वालों के लिए है। इसमें कुछ कटे हुए पेड़ों के तने दिखाई दे रहे हैं। एक कटे हुए पेड़ के तने पर एक हाथ की आकृति दिखाई दे रही है। शायद यह संकेत करता है की हम सिर्फ प्रकृति पर परिहार नहीं कर रहे बल्कि इंसान खुद अपनी जड़ें काट रहा है। प्रतिरोध तो प्रकृति लेगी। सरवर्क के अर्थ और भी हो सकते हैं। फैली कविता पेड़ सुनों भी इसी और इशारा करती है:
किन्हीं पलों विशेष में
हो नहीं सकते ऐसे वायवी
कि तुम्हारे आर पार होती
आरी के बाद भी तुम रहो।
व्यक्ति का स्वामित्व हमेशा इंसान को उकसाता है की वह समाज की मुख्यधारा और स्थापति से कुछ अलगाव बना कर रहे। क्योंकि इस पदार्थिक युग में हर बाशिंदे के लिए आत्मसम्मान को बचा पाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। मानवीय सम्मान और मूल्यों को यहां कम अहमियत दी जाती है। भावनाओं की इस युग में कोई कीमत नहीं रह गई है यहां ही चीज को मुनाफे और नुकसान की दृष्टि से देखा जाता है। चन्द्रेखा जी की कविताएं सामाजिक मुख्यधारा/ स्थापति और मानवीय भावनाओं के बीच का द्वंद हैं:
श्रापित माहायात्रा के लिए
जिसे देखती हुई सड़क पर से
फहराए जा रहे संस्कृति के परचम
बिना झुके गुज़र जाते हैं
पन्ना 12
इसी तरह कविता गीली मिट्टी में चन्द्रेखा जी ने उस अस्तित्व की बात कही है जो इंसान के एक सांस लेती मशीन में बदल जाने की प्रक्रिया में बहुत पीछे छूट गया है। अजीब विडंबना है कि आज के मनुष्य को याद दिलाना पड़ रहा है कि वह मशीन नहीं इंसान है:
तुम अपने बच्चे को
जंगल की गीली मिट्टी पर
नंगे पाँव चलने की इजाजत
क्यों नहीं दे देते
क्यों पहनाते उसे
पतले तने का वह जूता
जिसे पहन कर सारी उम्र
जलती सड़कों पर भागते
और तुम बूंद बूंद सूखते रहो।
पन्ना 15
चन्द्रेखा जी की छोटी नज्में अत्यंत प्रभावशाली हैं। इनमें कुछ रहस्य भी है और फिलासपि भी। सबसे बड़ी बात की छोटी कविताएं कलात्मिक रूप से बहुत सराहनीय है। इनमें शब्दों की भरमार न होने से ख्याल प्रभावशाली ढंग से प्रकट होता है। अंत एक ही कविता पूरे जीवन की फिलासपि के वर्णन की सुंदर पेशकारी करती है:
एक ही धुन
एक ही प्रारब्ध
और फाख्ताओं का
अंत भी एक ही।
इस पुस्तक में जीवन का सच है वो हर पहलू मुझे इन कविताओं में नज़र जो माननीय जीवन के साथ न सिर्फ जुड़ा हुआ है बल्कि आज की युग संवेदना को झंझोड़ने वाला है। ज़रूरत भर सुविधा हिंदी कविता के क्षेत्र में एक उल्लेखनीय उपलब्धि मानी जा सकती है।
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