Monday, April 10, 2023

रंजीत साहू की दो कवियाएँ


गुमसुम हुई शाम सुहानी 


फिर बहकने लगा  फागुन देखो,


टेसू के पेड़ों  से गुजर गया I


ढलती शाम की जलती किरणों में,


इश्क़ का हुनर  बिखर गया !



एक कश्मकश शुरू हुई  दिल में, 


भूलने और याद करने  में I


 फर्क सब कुछ मिटने  लगा है, 


मिट जाने  या ज़िन्दा रहने में  I



सोचता हूँ  मैं कुछ कह दूँ मगर,


खामोशियाँ रास आने लगी हैं  I


इन हसीन वादियों  में फिर  जैसे


चंद बेबसियाँ  छाने लगी हैं I



अनजाने से  दिल के किसी कोने से,


 कुछ धड़कनें मायूस हुई  I


'नाजायज' नाम लिए कुछ  रिश्ते;


 ज़िन्दगी भी मेरी  खामोश हुई !



तन्हाई का एहसास देने के लिए,


कुछ यादों को साथ लिए हुए, 


दामन में गिर गया लम्हा एक,


अश्कों का हार हाथ  लिए हुए  II



लिखने दो अफ़साना 


उसका चेहरा, फिर उभर गया,


हुआ रौशन,चमन  दिल का I


कुछ जज़्बात फिर  से उमड़ गए,


सज गयी  रुत महफ़िल की  !



कहने दो आज मुझे दिल की बात;


एक  बहार  सी  है रुकी हुई I


पिघलने दो रिश्तों में जमी बर्फ को,


सांसो की नदी  जैसे  है रुकी हुई  !


खाली पन्नों से भरी  है जिन्दगी,


कुछ यादों को इनमे डालूँ ,


नादानियों  को अलफ़ाज़ दे दूँ आज,


 मौसम से   मैं रंग  चुरालूँ   I



लिखने बैठा हूँ  मै, इश्क़ की  किताब, 


रोको न  कोई, दिल की बात को,


क्यों करूँ मैं   भला  उम्र का हिसाब?


खो न दूँ कहीं  इस सौगात को !




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