Saturday, March 4, 2023

डॉ. धर्मपाल साहिल की तीन कवियाएँ

धर्मपाल साहिल
पत्धर

शीशे के घर में रहने वाले, 

करते हैं बात पत्थर की.

पत्थर जब पूजा गया तो, 

बढ़ गई औकात पत्थर की...! 

वही मंदिर, वही मस्जिद

 और वही गुरुद्वारे में था, 

हर जगह नज़र आई, 

जात एक ही पत्थर की.....! 

शीशे का होकर रिश्ता, 

शीश महल जैसा था, 

हो गया चूर जब लगी, 

 उसे घात पत्थर की...! 

पत्थरों के शहर में , 

 पत्थर जैसे लोग मिले, 

 फलदार पेड़ों को मिली, 

 क्यों सौगात पत्थर की....! 

 फूल था" साहिल"

 फूल ही बना रहा, 

बेशक होती रही उस पे                           

 बरसात पत्थर की....!

 

सवाल दर सवाल


सवाल ये नहीं है कि

वे कौन थे

कितने थे

कहां से आए थे

कौन कौन से

हथियार लाए थे

सवाल ये भी नहीं है

कितने घर जलाए गये

कितनी दुकानें लुटीं

कितने सुहाग उजड़े

कितने आंसू उमड़े

सवाल दर सवाल ये है कि

झूठे डर दहशत खौफ की

अफवाहें फैलाता कौन है

फिरकापरस्ती के पलीते को

आग दिखाता कौन है

मौत के  तांडव के लिए

मंच सजाता कौन है

आजाद मुल्क में

आजाद होकर भी

आजादी आजादी

चिल्लाता कौन है

मेरे भाई

जानते तुम भी हो

पता हमें भी है

इस हमाम में

हम सब नंगे हैं

वोटों की खान हैं

ये जो दंगे हैं

फिर भी

एक दूसरे पर

अंगुली उठाते क्यों हो

हकीकत से नजरें

चुराते क्यों हो

सच्चाई पर पर्दा

 गिराते क्यों हो।

 उपले

गाँव मे

घर के सेहन में 

जमीन और दीवारों पर चिपके उपलों पर पड़े

माँ की अंगुलियों के निशान

नक्श हैं उन हाथों के

जिन्होंने सजा संवार कर

इस मकान को घर बनाया

खुशियाँ का संसार सजाया

इन उपलों से आती है मुझे

माँ के बरकती हाथों की सुगंध

इन उपलों पर पड़े नक्श

अमिट हैं, अमर हैं, अज़र हैं

जीवाश्म की तरह 

ये बन सकते हैं पुल

नयी और पुरानी 

पीढ़ी के बीच

मगर मेरी बेटी

देखकर उपले

कर लेती है नाक मुंह बंद

आती है उसे

इन उपलों से दुर्गंध

उसे तो इनके पास से भी

गुजरना नहीं पसंद.


होशियारपुर, पंजाब-

Mobile-9876156964

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