*कुरुक्षेत्र ये उदित युग का
ये काल, अपभ्रंश की धारा
परिवर्तन की है ये पृष्टभूमि
कर्म -भुमि है ये रण-भूमि
कुरुक्षेत्र ये उदित युग का।
निःशस्त्र तुमको लड़ना है
महीधर बन कर अड़ना है
सुगम भाव से करना तुझे
आगाज़ अविकल्प युद्ध का
अमन-क्रांति के अंकुर सींच
शस्य शांति की उन्नत करना
प्रेम महुर देकर खरपात को
रखना ध्यान आत्म शुद्ध का
अग्रज सहचर अनुज बहुतेरे
वर्य बनके अविज्ञ मन हरना
चक्रव्यूह के षड़यंत्र को भेद
आह्वान करना उत्तम बुध का
हिम्मत दे कर परिश्रांत को
ऊधमी को दे कर ठण्डाई
जिगिसा से विजित करना
अनुकुल अवसान युद्ध का
ये काल, अपभ्रंश की धारा
परिवर्तन की है ये पृष्टभूमि
कर्म-भूमि है ये रण-भूमि
कुरुक्षेत्र ये उदित युग का।
बिक रहे बाजार में शब्द
पानी भी है पन भी अपना
प्रत्यक्ष को बोल डरूँ कैसे।
बिक रहे है अब बाजार में
शब्दों का, मोल धरूँ कैसे ।
सियासी ताशों के शोर में
बंसी धुन माधुरी सुनु कैसे
सनद मेरी पूछते साहिब
तोल स्वंय का करूँ कैसे।
बावड़ी भी उजला नीर भी
बिन रस्सी डोल भरूँ कैसे
नदिया गहरे कमल खिले हैं
बिन कुचले अब तरूँ कैसे।
यकीनन वो सबला है
शक्ति की संज्ञा है नारी
विपरीत बहाव के बह सकती
प्रेम प्रतिमा बनने को
सहर्ष अगन में दह सकती
माया की त्रिकाल स्वामिनी
बुद्धि की इंद्राणी भी तो सरस्वती है
लाज करो तनिक
श्वास से जीवन तेरा भरती वो
कहता जिसे तूँ अबला है सम्पूर्णा है वो
यकीनन वो सबला है।
सौंदर्य का दर्पण है वो
प्रेम की अवबुद्ध गाथा है
शक्ति का वो अनंत स्रोत
बुद्धि की निःस्वार्थ दाता है
हर भाव, व्यंग, अहसास को समझती
हर अनुमान की ज्ञाता है
लाज करो तनिक
चित्रित चरित्र तेरा करती वो
कहता जिसे तूँ अबला है
श्री-जननी है वो
यकीनन वो सबला है।
काम, क्रोध और तृष्णा
इन सब में भी वो है कृष्णा
अग्नि की वो चिंगारी
शीतलता की मूल है
कदम उड़ी धूल है जो
निर्माण गगन का कर जाती है
लाज करो तनिक
तनार्पण तक पोषण तेरा करती वो
कहता जिसे तुम अबला है
अप्राजिता है वो
यकीनन वो सबला है।
Superb all poem with full of meaning
ReplyDeleteआभार रुचिका जी, 🙏
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