जीवंत सा जीवन
पूछा जो मैंने समंदर से,तेरी मौजौ का मकसद है क्या ?
पलटकर उसने कहा,
जीवन नया हो, मकसद नया हो,
नयी उम्मीदें हो, नयी हो आशायें |
बडी जीवंत सी हो, कुछ आकांक्षायें ।
गम हो या खुशी, ज़िन्दगी हो नयी,
क्यों सोचे उसको, जो कल हो गया ?
क्यों उसको सोचे जिसका पता नहीं ?
हर पल को जीने की कोशिश नयी सी हो,
जीवंत सा जीवन का अस्तित्व अपना हो ।
जिन्दगी जीने का, अंदाज नया हो,
झूठ के आडम्बरों से, मुक्त हो जीवन हो,
आत्म बोध से सुवासित, व्यक्तित्व अपना हो,
विश्व के अविरल तुमुल में, पहचान अपना हो,
ममता और करूणा से, भरा हृदय अपना हो।
उम्मीदों की मिशालें
हर तरफ फैला हो अंधेरा,
मन विचलित सा होने लगे,
मंजिल तक पहुँचना दुर्गम हो,
सुनो पथिक घबराना मत।
लेकर उम्मीदों की मिशालें,
आशाओं की तू दीप जला,
हर मार्ग सुगम हो जाएगा,
तूफानों की तू फिक्र न कर।
कौन क्या कहेगा छोड़ सोचना,
तू अपना समय व्यर्थ ना कर,
तम को चीर कर आगे बढ़,
चट्टानों की तू फिक्र ना कर।
आयेगा दिन रात के बाद,
है अटल सत्य ये मान ले तू,
विजय ध्वज फहराने को,
तू मुसलसल आगे बढ़।
चाहे राह में हो काँटे अनंत,
मुख से तू उफ़ ना कर,
पर्वत की भांति अटल अडिग,
विघ्नों की तू परवाह ना कर।
Thanks a lot dear Jatindar for publishing my poems
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत संदेश आशा जी
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