Sunday, February 3, 2019

पतझड़ के दरख्तों के साथ एक दिन- जतिंदर औलख


सर्दी का मौसम आपने चरम पर है। पतझड़ बीत रही है। पतझड़ में ना जाने क्यों कभी कभी मन उदास सा हो जाता है, एकेलापन महसूस होने लगता है। बहुत ही सर्द दिन है पर हल्की हल्की धूप दिन के अस्तित्व को सहला रही है जैसे मन में पनप रहे मार्मिक ज़ख्म भरे जा रहे हों।  मैं अपनी बाइक लेकर निकल पड़ा, मैंने मन बना लिया कि पतझड़ के दरख्तों से मिलूंगा उनसे बात करूंगा और उनके कुछ फोटोग्राफ लूंगा।
वैसे मैं बन में कठोर तपस्या कर रहा वो रिखीवर नहीं जो दरख्तों की भाषा जान लेता है। लेकिन ये हर हाल आपके हावभाव समझते हैं
अगर आप इनसे बात करते हैं तो ये आपके मित्र बन जाते हैं।

वृष ऐसे प्रिय और विश्वाशनीय मित्र होते हैं कि आप इन्हें अंतरमन के भेद बेझिझक बता सकते हैं ये कभी विश्वाशघात नही करते। जिन रास्तों में से गुज़रता हूँ उन के किनारों पर उगे दरख्तों के साथ मेरी मित्रता हो जाती है। अक्सर उन राहों पर अकारण रुकता हूँ उनसे बातें करता हूँ। यह अक्सर प्रतिवचन देते हैं। चार साल पहले हिमाचल की एक एकांत वादी में सफर करते मुझे सड़क के किनारे बरगद का एक विशाल दरख्त दिखाई दिया। मैं उसके पास स्वयभाविक ही रुक गया उसका हाल पूछा अपना कहा। मैं आज भी उसके बारे में सोचता हूँ कि जब भी उधर से गुज़रा उस वृक्ष के पास फिर से रुकूँगा और अपनी दोस्ती के पल ताज़ा करूँगा।
आज फिर मिलने निकल पड़ा पतझड़ के दरख्तों से। उनकी सुनने अपनी कहने।
बिना पत्तों के रूखी-सूखी टहनियाँ लिए खड़े वृक्ष कुछ ऐसे लग रहे हैं जैसे मौसम के बदले हुए कष्टदायक तेवर सहन कर रहे हों।
पतझड़ के रूखे-सूखे दरख्त तो एक विभिन्न दृश्य पेश करते हैं। जीवन की कथा बदलाव के स्वर में कहते हैं। सभ कुछ शांतचित सहन कर लेना हर मौसम से दोस्ती कर लेना। मौसमों के बदलते रुख में दरख्त अपना अस्तित्व बदल लेते हैं और उनकी बेरुखी भी चुपचाप सहन करते हैं इसी आशा में कि एकदिन बहार उनके रूखे जिस्म पर संतोष और आनंद की मौज बन फूटेगी।
जतिंदर औलख
अमृतसर।
फोन। 9815534653





2 comments:

  1. Fine Aulakhji. The last para of this lealistic creation represents the truth behind human sufferings that leads to spring season means internal happiness too.

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