Saturday, February 24, 2018

सम्पादकीय- जतिंदर औलख

 समाज और साहित्यः


साहित्य समाज का अभिन्य अंग होना चाहिए और साहित्य ही इंसान में इंसानियत का संचार करता है। साहित्य चाहे मौखिक हो या लिखत इंसान के अंदर ज्ञान की जोत प्रकाशमान करता है। वही समाज विकसित होता है जो ज्ञानवान इंसानो से भरा हो। साहित्य हमेशा मनों में ज्ञान की रौशनी करता है। 
आज सुख-सहूलियत के सारे साधन मौजूद हैं फिर भी हर मन किसी ना किसी कारणवश बैचौन है। हर इंसान ज्यादा से ज्यादा हासिल करना चाहता है। हर जाति, धर्म और वर्ग अपने-अपने लिए और ज्यादा सुविधाएं हासिल करने में जुटे है।  इंसान बैचौन है तो समाज बिखराव की और बढ़ रहा है ऐसे में मानवीय सोच में क्रांतिकारी बदलाव की जरूरत है जो साहित्य ही ला सकता है। मात्र यही एक राह है जो सृष्टि और इंसान के बीच की बढ़ती दूरी को कम कर सकता है।
पंजाबी में हमने दस वर्ष पहले ‘मेघला’ का आरम्भ किआ जो आज पंजाबी साहित्य में एक अलग मुकाम विकसित कर चुका है। हम खुश हैं के आज यही प्रयास हिंदी में शुरू करने की प्रसन्ता ले रहे हैं जिसमे हमारी कोशिश होगी के मयारी रचनाएँ प्रकाशित कर पाठकों को साहित्य के साथ जोड़ा जाए।  
यह पहला अंक है, जो भी हमसे हो पाया स्वीकार कीजिएगा। देश भर से दोस्तों- लेखकों का भरपूर सहयोग
मिला है। फिर भी आने वाले अंकों में और अच्छा करने की कोशिश करेंगे।  देव भारद्वाज जी की रहनुमाई तो हमारे साथ है ही सुशिल ‘हसरत’ नारेलवी, दानिश भारती, प्रोरू चारु चित्रा और अन्य दोस्तों के लिए तो यदि मैं धन्यवाद शब्द कह दूं तो वह भी फर्जी सा लगेगा। मुझे पूरी आशा है के सभी साथियों के मार्गदर्शन से पत्रिका का भविष्य उज्ज्वल होगा।
हिंदी बहुत बड़े जनसमूह की भाषा है और इस पत्रिका में शामिल किए गए लेखक देश के विभिन्न क्षेत्रों से हैं, इसलिए भाषा शैली में विभिन्ता सामान्य बात है। कविता, कहानी और अन्य सामग्री के अलावा इतिहास के आँखों देखे घटनाक्रम पर आधारित दो लेख प्रकाशित किए गए हैं । उज्ज्वल भविष्य के लिए बीते हुए अच्छे-बुरे के झरोखे में झांकना जरूरी है।
पत्रिका को और बेहतर बनाने में आप सभी के सहयोग और मागदर्शन की आशा है। 
                          जतिंदर औलख
                            9815534653
                      मेघला जुलाई- सितंबर 2017 अंक से

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