Saturday, February 24, 2018

‘चुटकी भर मुस्कान’

जीवन के विभिन्न आयामों में फैलती 
‘चुटकी भर मुस्कान’

जीवन जहाँ प्रकृति से मिला एक अतुलनीय, अद्भूत, विलक्षण, वैभवशाली, महान् मायावी वरदान है, वहीं यह मानव के लिए कठिनाइयों, चुनौतियों, अप्रत्यासित घटनाओं के वशीभूत मिलन व बिछुड़न का स्वर भी पग-पग पर मुखर करता है। जीवन है तो ख़ुशी है, ग़म है। प्यार, मनुहार, टकराव, उपहास, उपालम्ब, यश, अपयश मनुष्य के दैनंदिन व्यवहार को तय करते हैं, उसके सामर्थ्य व वजूद को चुनौती देते रहते हैं। इन सभी झंझावतों के बीच यदि चुटकी भर मुस्कान अधरों पर किसी न किसी रूप में खिलती रहे तो इसमें कोई सन्देह नहीं रह जाता है कि जीवन सहज, सरस व सरल भाव-प्रवृति की ओर उन्मुख रहता है। कवयित्री रश्मि खरबन्दा की काव्य-कृति ‘चुटकी भर मुस्कान’ कुछ इसी तरह की अभिव्यक्ति लिए हुए है।
समीक्ष्य काव्य-संग्रह में 73 कविताओं का समावेश है, जो कि मानव-जीवन के विभिन्न आयामों, झंझावतों व उबड़-खाबड़, पथरीले तो गरम रेतीले रास्तों के यथार्थबोध से अवगत कराती हैं तो जीवन के उज्जवल पक्ष प्यार, हास-परिहास, स्नेह, वात्सल्य, रिश्तों की माधुर्यता का सोपान भी कराती हैं। काव्य-कृति का शीर्षक मनमोहक वजीवन के प्रति सकारात्मक सन्देश देता है। शीर्षक में निहित भाव, विषम परिस्थितियों के बीच चुटकी भर मुस्कान बनाए रखना, कवयित्री के काव्य-स्वभाव के साथ-साथ उसके व्यवहारिक पक्ष को भी उजागर करता है। 
अब शीर्षक की बात चल निकली है तो क्यों न इस समीक्ष्य कृति की शीर्षक कविता पर आया जाए। पृष्ठ 26 पर
उकेरी गई कविता ‘चुटकी भर मुस्कान’ वात्सल्य, सहृदयता व समर्पण के भाव लिए इस संग्रह की सुन्दरतम् कविताओं में से एक है। कवितांश, ‘‘चुटकी भर मुस्कान बच्चे की/मोह लेती है माँ को/.......बाँध लेती है अपने आँचल से/जब बच्चे बड़े हो कर/हो जाते हैं दूर/तो............./आँचल से बँधी/ख़ुशियों की एक एक गाँठ/खोलती है तन्हाई में/यानि तन्हा होकर भी/‘माँ’ कभी तन्हा नहीं होती।’’
प्रेमानुराग, प्रेमानुभूति के भावों का अद्भुत सामंजस्य है पृष्ठ 12 पर कविता ‘अहसास’ में-‘‘तुम जो/छू लेते हो/तो ज़िन्दा/होने का अहसास/हो जाता है/वरना/एक बुत से/ज़्यादा/मैं कुछ भी नहीं।’’ मनुष्य द्वारा किए गए कृत्यों का आईना बनकर उभरती है कविता ‘काश ऐसा होता-पृष्ठ 14 पर व विपरित हालात के चक्रव्यूह में फँसे इंसान की विवश परिणति है कविता ‘दर्पण’-पृष्ठ 25 पर तो आम के ‘पेड़ नम्बर 45’ के माध्यम से कवयित्री क़ुदरत की अनमोल सौगातों में से एक वृक्ष की हमारे जीवन में उपयोगिता दर्शाने के साथ-साथ उसके साथ अपने जुड़ाव को भी सहज भाव से प्रस्तुत करती हैं।
जीवन को गतिशील रखने के लिए मनुष्य को क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते हैं। अभावग्रस्त को अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरत पूरी करने व सामाजिक व पारिवारिक दायित्वों के निर्वाह हेतु कभी-कभी इस तरह की स्थितियों से भी दो-चार होना पड़ता है जहाँ पर वो दूसरे के ग़म में अपनी ख़ुशी टटोलना प्रारम्भ कर देता है। ऐसी ही स्थिति संवेदनशील ढ़ंग से पेश करती है पृष्ठ 33 की कविता-‘कलवा’। कलवा श्मशान में चाण्डाल है।
हृदय-धरा पर टीसते एह्सासात की बयानी हैं कुछ कविताएं, जिनमें पीड़ा रह-रहकर यादों के सहारे गुज़रे वक़्त के पन्नों में कसमसाती हैं, फड़फड़ाती हैं।  दुआ में उठे हाथ हैं, कविता ‘हरे काँच की चूड़ियाँ-पृष्ठ 21 पर , जिसमें कवयित्री औरों की जोड़ियों और चूड़ियों की सलामती की कामना करती है। 
कविता ‘नेह की चदरिया’-पृष्ठ 35 पारिवारिक रिश्तों के स्वभाव, उनकी आत्मीयता, उपालम्ब व स्नेह को बखूबी अपने-आप में समेटे हुए है। ख़ूबसूरत अल्फ़ाज़ की नुमाइंदगी देखने को मिलती है कविता ‘आशिर्वाद’-पृष्ठ 39 पर, जिसमें एक लड़की अपने होने वाले पति में कुछ ऐसा चाहती है-कवितांश-‘‘मैं चाहूँ एक इन्सान/सीधा सादा/जो करे बस/इतना वादा/ना थोडा़ ना ज्यादा/बाँट लेंगे दुःख-सुख/ आधा-आधा।’’ ‘पाती’-पृष्ठ 18, ‘श्राद्ध’-पृष्ठ 19, ‘तस्वीरें’-पृष्ठ 30, ‘राम भरोसा’-पृष्ठ 36, ‘सरहदें’-पृष्ठ 43, ‘शब्दबाण’-पृष्ठ 44, अच्छी कविताओं में शुमार की जा सकती हैं।
अलगाव व बिछोह की टीस व कहीं कहीं पर इस से उपजी मार्मिक पीड़ा इस संग्रह की कई कविताओं में करवट लेती हैं। किसी ख़ास के जाने से किसी एक की ज़िन्दगी से क्या कुछ नहीं चला जाता इसका आत्मबोध कराती हैं ये कविताएं। जब ख़ुशी भी मन को ख़ुशी न लगे और घर-आँगन रौशन होते हुए भी उसमें रौनक न दिखे तो कविता ‘तेरा संग’ हृदय-धरा पर जन्म ले लेती है। इस ख़ास कमी का पुरज़ोर आभास मिलता है संग्रह की कई कविताओं में। यह दर्द हिन्दुस्तानी कवयित्री की लेखनी से ही मुखर हो सकता है। 
स्त्री-देह को लेकर समाज  की एक विशेष मानसिकता का कच्चा-चिट्ठा खोलती है कविता ‘अस्पृश्यता’-पृष्ठ 45 पर। अलगाव की कसैली चुभन हृदय को कचौटती है पृष्ठ 90 की कविता ‘मन की मिट्टी’ में। सैनिक की ब्याहता का दर्द छुपा है कविता ‘गुहार’-पृष्ठ 54 पर। कभी-कभार बचपन में भी लौट जाती है कवयित्री-कविता ‘बचपन’ पृष्ठ 52, ‘‘कल बरसां बाद मिली/बचपन की एक सहेली/देख के उसको/ पलभर में/मैं अपना बचपन/फिर से जी ली।’’
यह कविता की ताक़त है, इसका सामर्थ्य है कि ये व्यक्ति को किसी भी समय-काल ले जाकर पलभर में उसे उसकी मनचाही अवस्था में विचरन कराने की क्षमता रखती है। यही विचरन कवयित्री रश्मि खरबन्दा भी अपनी कुछेक कविताओं में बख़ूबी करती व कराती हैं। इसी क्रम की कविता है ‘गुड़िया’-पृष्ठ 82 पर।
ग़रीब चौकीदार की भयग्रस्त विवशता तो उसके काँधे तोड़ती पारिवारिक ज़िम्मेदारी की व्यथा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है कविता ‘चौकीदार’-पृष्ठ 60 पर। सेवा में परमार्थ और परमार्थ में पूजा-अर्चना, आराधना, कृतार्थ की भावना है कविता ‘मेरी पूजा के मायने’-पृष्ठ 64 पर, जिसका भाव सच्ची पूजा दरिद्रनारायण की सेवा करना है। कुछ कविताओं के भावार्थ नाउम्मीदी में उम्मीद की किरणें तलाशते हैं। सामाजिक परिवेश में समस्याओं के प्रति बौखलाहट है कविता ‘प्रश्नचिन्ह’-पृष्ठ 67 पर। पृष्ठ 71 पर कवयित्री ‘धुआँ-धुआँ अतीत’ में ज़िन्दगी तलाशती नज़र आती हैं तो शिकायत भी कर लेती हैं पृष्ठ 66 की कविता ‘शिकवे’ में।
हाँ, कुछ कविताओं में प्रिय की मधुर यादें भी भावों के दामन से लिपटी नज़र आती हैं। मुफ़लिसी-बेबसी की दास्तां व कामगार के लिए चिन्ता भी इस संग्रह की कविताओं के विषय हैं। सम्बन्धों का बनता-बिगड़ता ताना-बाना तो अक़ीदत और हक़ीक़त में अन्तर भी देखने को मिलता है कुछ कविताओं में।
समीक्ष्य काव्य-संग्रह की कुछ कविताएं अत्यन्त संवेदनशील व हृदयभेदी हैं, जो कि चिंतन-मनन् के लिए विवश करती हैं। यही कवयित्री रश्मि खरबन्दा की क़लम का सामर्थ्य है कि वह पाठक को महज पाठक नहीं रहने देती। पाठक को आंदोलित, उद्वेलित कर उसमें एक नई सोच की उर्जा का संचार कर देती हैं।
बेशक ‘चुटकी भर मुस्कान’ कवयित्री रश्मि खरबन्दा का पहला कविता संग्रह है परन्तु इसमें समाहित कविताओं से यह आभास होता है कि कवयित्री में भावों का एक विशाल ज़ख़ीरा हिलौरे ले रहा है। यह भी स्पष्ट होता है कि इन उफनते-बिफरते भाव-हिलौरों को कविताई भाषा, अन्तर्लय, शैलीगत चातुर्य व कसावटी शिल्प के हुनर की मदद से काग़ज़ पर उकेरने का कला-कौशल कवियित्री रश्मि खरबन्दा में बख़ूबी है।
समीक्ष्य कृति ‘चुटकी भर मुस्कान’ का कथ्य सामाजिक व पारिवारिक धरातल के इर्द-गिर्द घूमता है। जहाँ सहज, सरस कविताई भाषा मन को आनन्दित करती है, वहीं शैली प्रभावित करती है।  शिल्प कसावट लिए हुए है जो संग्रह की कविताओं का उज्जवल पक्ष भी है। चौकीदार की भयग्रस्त विवशता तो उसके काँधे तोड़ती पारिवारिक ज़िम्मेदारी की व्यथा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करती है कविता ‘चौकीदार’-पृष्ठ 60 पर। सेवा में परमार्थ और परमार्थ में पूजा-अर्चना, आराधना, कृतार्थ की भावना है कविता ‘मेरी पूजा के मायने’-पृष्ठ 64 पर, जिसका भाव सच्ची पूजा दरिद्रनारायण की सेवा करना है। कुछ कविताओं के भावार्थ नाउम्मीदी में उम्मीद की किरणें तलाशते हैं। सामाजिक परिवेश में समस्याओं के प्रति बौखलाहट है कविता ‘प्रश्नचिन्ह’-पृष्ठ 67 पर। पृष्ठ 71 पर कवयित्री ‘धुआँ-धुआँ अतीत’ में ज़िन्दगी तलाशती नज़र आती हैं तो शिकायत भी कर लेती हैं पृष्ठ 66 की कविता ‘शिकवे’ में।
हाँ, कुछ कविताओं में प्रिय की मधुर यादें भी भावों के दामन से लिपटी नज़र आती हैं। मुफ़लिसी-बेबसी की दास्तां व कामगार के लिए चिन्ता भी इस संग्रह की कविताओं के विषय हैं। सम्बन्धों का बनता-बिगड़ता ताना-बाना तो अक़ीदत और हक़ीक़त में अन्तर भी देखने को मिलता है कुछ कविताओं में।
समीक्ष्य काव्य-संग्रह की कुछ कविताएं अत्यन्त संवेदनशील व हृदयभेदी हैं, जो कि चिंतन-मनन् के लिए विवश करती हैं। यही कवयित्री रश्मि खरबन्दा की क़लम का सामर्थ्य है कि वह पाठक को महज पाठक नहीं रहने देती। पाठक को आंदोलित, उद्वेलित कर उसमें एक नई सोच की उर्जा का संचार कर देती हैं।
बेशक ‘चुटकी भर मुस्कान’ कवयित्री रश्मि खरबन्दा का पहला कविता संग्रह है परन्तु इसमें समाहित कविताओं से यह आभास होता है कि कवयित्री में भावों का एक विशाल ज़ख़ीरा हिलौरे ले रहा है। यह भी स्पष्ट होता है कि इन उफनते-बिफरते भाव-हिलौरों को कविताई भाषा, अन्तर्लय, शैलीगत चातुर्य व कसावटी शिल्प के हुनर की मदद से काग़ज़ पर उकेरने का कला-कौशल कवियित्री रश्मि खरबन्दा में बख़ूबी है।
समीक्ष्य कृति ‘चुटकी भर मुस्कान’ का कथ्य सामाजिक व पारिवारिक धरातल के इर्द-गिर्द घूमता है। जहाँ सहज, सरस कविताई भाषा मन को आनन्दित करती है, वहीं शैली प्रभावित करती है।  शिल्प कसावट लिए हुए है जो संग्रह की कविताओं का उज्जवल पक्ष भी है। साहित्य जगत् को एक अच्छे काव्य-संग्रह देने के लिए कवयित्री रश्मि खरबन्दा को       साधुवाद।
डॉ0 सुशील ‘हसरत’ नरेलवी
1461-बी, सैक्टर 37-बी, 
चण्ड़ीगढ़ - 160 036.
चलभाष : 92165-01966

    मेघला जुलाई- सितंबर 2017 अंक से

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