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डॉ० आरती कुमारी |
दास्तां इश्क मोहब्बत की सुनाने वाले
जाने किस देश गए पिछले जमाने वाले।।
कस्मों वादों की रेवायत तो अभी है लेकिन
अब कहाँ लोग हैं, वो वादे निभाने वाले।।
जिंदगी क्या है किसी ने नहीं समझा लेकिन
मौत आती है तो रोते हैं जमाने वाले।।
अब तो पलकों पे भी जलते नहीं अश्कों के चिराग
गर कभी जल भी गए, आए बुझाने वाले।।
मेरी गज़लों की तरह मुझको भी गाओ तो कभी
ऐसे मौसम भी कहाँ लौट के आने वाले।।
‘आरती’ जिस्म की दहलीज़ पे आँखों के चिराग़
आंधियों में भी जलाते हैं जलाने वाले।।
गज़ल
तेरे हमराह यूं चलना नहीं आता मुझको
वक्त के साथ बदलना नहीं आता मुझको।
मैं वह पत्थर भी नहीं हूँ कि पिघल भी न सकूँ
मोम बनकर भी पिघलना नहीं आता मूझको।।
कीमती शै भी किसी राह में खो जाये अगर
हाथ अफसोस का मलना नहीं आता मूझको।।
तुम मुझे झील सी आँखो से अभी मत देखो
डूब जाऊँ तो निकलना नहीं आता मुझको।।
आग का मुझ पे असर कुछ नहीं होने वाला
तुम जलाओ भी तो जलना नहीं आता मुझको।।
डॉ० आरती कुमारी,
बिहार।
मेघला जुलाई- सितंबर 2017 अंक से
मेघला जुलाई- सितंबर 2017 अंक से
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