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धर्मपाल साहिल |
शीशे के घर में रहने वाले,
करते हैं बात पत्थर की.
पत्थर जब पूजा गया तो,
बढ़ गई औकात पत्थर की...!
वही मंदिर, वही मस्जिद
और वही गुरुद्वारे में था,
हर जगह नज़र आई,
जात एक ही पत्थर की.....!
शीशे का होकर रिश्ता,
शीश महल जैसा था,
हो गया चूर जब लगी,
उसे घात पत्थर की...!
पत्थरों के शहर में ,
पत्थर जैसे लोग मिले,
फलदार पेड़ों को मिली,