Sunday, November 13, 2022

'डा: आरती कुमारी' सहज में ढली सुर्जन परिक्रिया।

डॉ० आरती कुमारी हिंदी, उर्दू व अंग्रेज़ी में समान लिख रही हैं और अनेक साहित्य पत्रों में छप भी रही हैं। कमाल की बात तो यह है की वह तीनों भाषा मे अपनी सुर्जनात्मिक उर्जा को प्रकट करने के लिए समान महारत रखती हैं। वह एक कवि, ग़ज़लगो के साथ शिक्षाविद भी हैं। उनकी कई रचनाएँ व आलेख राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उनका काव्य संग्रह ' धड़कनों का संगीत' राजभाषा विभाग द्वारा सम्मानित एवं अभिधा प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है। उनके संपादन में 'ये नए मिज़ाज का शहर है' और 'बिहार की महिला ग़ज़लकार' ग़ज़ल संग्रह आया है। उनकी रचनाएँ आकाशवाणी और दूरदर्शन से नियमित प्रसारित होती रहती हैं। आरती कुमारी साहित्य त्रैमासिक पत्र मेघला के संपादकीय मण्डल से जुड़ी रही हैं। उनसे एक साहित्य कान्फ्रेंस में मेरी मुलाकात हुई थी। हिंदी कविता और ग़ज़ल में उनका एक अलग स्थान है। उनके लिए साहित्य रचना एक दिव्य कर्म जैसा है। अपनी कल्पना को काविय विचारों में ढाल के शब्दों के लयबद्ध स्वरूप में पेश करना उनकी कविता का खास पहलू है। आरती कुमारी की कविता की बात करें तो उनकी सोच का अपना व्यक्तिगत पहलू ही उनकी कविता की विशेषता बनता है। इसमें प्यार की भावनाएँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती दिखाई देती हैं : "मन्नत के धागों में बांध दिया है तुम्हे और हर फेरे के साथ बांध रही हूँ एक गांठ हमारे प्यार की लंबी उम्र के लिए" उनकी कविता में बहुत कुछ ऐसा भी है जिसे साधारण तौर पर कहा नही जा सकता और प्यार, शिकवे, बीती यादों की कसक और उम्मीद की उड़ान भी है। कविता और साहित्य कर्म के प्रति वह हमेशा निष्ठावान रहती हैं। समूर्ति कविता में वह बहुत ही मनमोहक ढंग से मन के आंगन में यादों के खिले फूलों से अवगत कराती हैं : "उन पन्नों पर दिखे / अठखेलियाँ करते शब्द / अनुशासित भाव / कुछ स्पंदित क्षण/ सूखे गुलाब के निशान और /आँखों की नमी से धुले/ तुम्हारे ख़त...। ग़ज़ल में भी उन्हें समान अनुभव हासिल है। ग़ज़ल में उनके ख्याल सहज और सुहज के साथ मन में उतरते जाते हैं : आंधी चली थी शमे बुझाने तमाम रात, जलते रहे थे खाब सुहाने तमाम रात। ..... गम से जब मिलना मिलाना हो गया। कम खुशी का आना जाना हो गया। आरती कुमारी सुर्जन प्रकिया में काफी सक्रिय रहती हैं। वह हिंदी और अंग्रेज़ी के विश्व स्तरीय रसालों और अखबारों में छप रहीं है। उनकी एक कविता 'पुल' यहाँ पेश करता हुआ आरती कुमारी की सर्जनात्मक प्राप्तियों के लिए दुआ करता हुँ: पुल ----- विश्वास की ईंटों को जोड़कर प्यार के गारे से सना चलो बनाएँ संवाद का एक पुल जो सीधे तुम्हारे दिल से मेरे दिल तक पहुँच सके इससे पहले कि आ जाएं हमारे रिश्तों में झूठ और धोखे की दरारें और आ जाएं कभी न तय होने वाली दूरियाँ। 

 जतिन्द्र औलख
mob: 9815534653

No comments:

Post a Comment

रीतू कलसी की कुछ कविताएं

  हम और तुम भले चाहें  युद्ध न हों पर युद्ध होंगे  और मरना किसे  इस युद्ध में यकीनन हमको तुमको नेता आए,नेता गए  दर्ज हुआ युद्ध इतिहास मे तो ...