Saturday, February 24, 2018

कविताएं -बिरेन्द्र शर्मा ’वीर’

बिरेन्द्र शर्मा ’वीर’’

बिरेन्द्र शर्मा ’वीर’, पिता श्री सुरेश चन्द मोद्गिल, माता श्रीमती कृष्णा देवी, जन्म 9 फरवरी 1974, शिक्षा विश्वविद्यालय :स्नातकोŸार (कला) हिमाचल प्रदेश, संप्रतिः मैनेज़र बिज़नेस डवेलपमेंट, अवार्ड : हरफनमौला स्वयंसेवी 1997 एवं बैस्ट बल्ड डोनर 1998 (हि.प्र)

पहाड़ बोलते हैं


कौन कहता है
पहाड़ नहीं बोलते,
बोलते हैं पहाड़
और
बुलंद आवाज़ में बोलते हैं !

सर-सर करती हवा
उनसे बातें करती है 
झर-झर झरता झरना 
उनको गीत सुनाता है
कल-कल करती नदियाँ 
उनके किनारे पनपी
कई सभ्यताओं का इतिहास बताती हैं
और

पहाड़ धैर्य से सुनता है !

ये भी पहाड़ ही तो हैं
जो दूर समुद्र से 
वर्षा को बुलाते हैं 
ताकि
हम सब जिंदा रह सकें ।

कौन कहता है
पहाड़ नहीं बोलते घ्
कोमल, मनभावन
प्रकृति के दृश्य देखने हेतु
पहाड़ ही तो हमें
अपनी खामोश आवाज़ दे कर बुलाते हैं ।

पहाड़ जब
वर्फ से सफेद
चाँदी समान विशाल चादर ओढ़ते हैं
तो कौन है घ्
जो इनकी मधुर आवाज़ नहीं सुनता
और विशाल हरयाए मैदानों
खड़ी पगडण्डी से
बात नहीं करना चाहता । 

ये भी पहाड़ ही तो हैं
जब मैदानों में
बेदर्द लू तन को झुलझाती हैं 
तो 
सर्द हवा का झोंका देकर
अपनी विशाल गोद में
सोने को बुलाते हैं । 
ये पहाड़ ही तो हैं
जहाँ
एकांत भी बात करता है 
पग-पग पर बदलते दृश्य 
हरी भरी मखमली घास की चादर
असंख्य जड़ी-बूटी,
खनिज़ सम्पदा,
मीठे पानी के सोते 
और उन पर बिचरते 
संग-संग जीते
असंख्य भिन्न-भिन्न 
जीव-जन्तु
ये भी तो पहाड़ों में बे़खौफ विचरते हैं
और पहाड़ों से ही बतियाते हैं । 

मगर अब
बहुत कुछ बदल रहा है
अब पहाड़ों ने क्रूर भाषा भी 
बोलनी सीख ली है
जब से इन्सानों ने 
इनकी पावन गोद में
गंदगी का
अम्बार लगाना शुरू किया है
जब से
इनको काट-काट कर
नंगा और खोखला किया है
तब से चेतावनी स्वरूप
नदी नालों में बाढ़ भी तो 
इनके आदेश से ही आती है
इन्होंने 
दरकना भी शुरू कर दिया है 
और 
शुरू कर दिया है 
जहाँ-तहाँ ताण्डव मचाना
हालांकि इंसानों को सबक सिखना
इनका मकसद नहीं । 

अब जब मजबूरन
पहाड़ बोलने लगे हैं
तो 
हमें सुनना होगा
मनन करना होगा
नहीं तो 
पहाड़ अपनी जुबान बोलते रहेंगे 
विध्वंस के द्वारा खोलते रहेंगे । 

अंतर्मन की आवाज़

पूछता है मन अपने भीतर बैठे
अंतर्मन रूपी राहगीर से
ठहरता नहीं 
जो तू एक जगह
ब्यान कर तेरी रज़ा क्या है ?

डूबा रहता है 
तू जिन ख़्यालों में,
बात क्या है, 
जलजला क्या है ?

तू फ़िदा है
एक हसीं चेहरे पर
और कहता है पता नहीं
वो बला क्या है ?

अगर प्यार का मतलब
मालूम नहीं
अपनाया यह सिलसिला क्या है ?
रहता है उदास
चला तुझ पर जादू क्या हैं ?

बात मान, 
ऐ दोस्त,
इसमें तेरा भला क्या है ?
छोड़-छाड़ यह प्रेम की बातें
ग़लत सही तू जान ले
प्रेम ही करना है तो 
देश से कर
और भला कर संसार का
ऐ पागल तू
अंतर्मन की आवाज़ जान ले ।



                                                     मेघला जुलाई- सितंबर 2017 अंक से








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