Wednesday, October 18, 2023

सुखजीत की क्था शैली के बारे कुछ काविक भाव: शैलेंद्र


मैं फंस चला हूं....


कल्पना की गहराइयों को छूकर,

पूछ पूछ कर सच को अभिव्यक्त कर,

परिचय परिचर्चा में भी

अव्वलता पाकर,

सच झूठ के संघर्ष में फंसकर निकल जाना...


श्रोताओं को असमंजस में डाल जाना,

अध्ययन की तल्लीनता का पाठ पढ़ा जाना,

मानवीय बेसिक जरूरतों का स्मरण करा जाना,

डूबते जहाज़ को स्वयं शक्ति का अंदाज करा जाना....


नाम देने का निर्णय पाठक पर छोड़ देना, 

निष्कर्ष के लिए पाठकों   पर निर्णय लेने देना,

देशज शब्दों से बू और खुशबू के अंतर को

आश्रय देना,

अभिव्यक्ति अभिनय में

इंतजार की बेबसी तोड़

देना.....


बस नाम ही पहचान के लिए

काफी है,

अच्छे बुरे विशेषण तो आलोचक थोप ही देंगें,

पदनाम अधिकतर कवि

बंधु अंतिम बंध में प्रयोग करते हैं,

आपने तो अंत होने का पता बताने में मांग ली माफी है।


हम आनंद कम, निर्णय अधिक लेते हैं,

हम प्रतिक्रिया कम समीक्षा अधिक करते हैं,

हम पुरस्कारों के लिए लिखना चाहते हैं,

आप समाज के लिए,बस

सरकार को सुधार के लिए प्रेरित करना चाहते हैं।


गांव की पृष्ठभूमि से उठकर साहित्य में कदम

रखा है,

डर के माहौल में रहकर

आपने साहस करना सीखा है,

ऋण उगाही करते करते

अपनी संवेदना को नहीं

 किया सौदा है,

 कम लेकिन सटीक यथार्थ को जीकर अपने

किरदारों में जीकर लिखा है।



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