Wednesday, March 2, 2022

सन्तोष कुमार पोखरेल (नेपाल) : कविताएँ

 

संतोष कुमार पोखरेल नेपाल के एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध बहुभाषी लेखक और कवि हैं। वह नेपाली, अंग्रेजी, हिंदी और रूसी में लिखते हैं। उनके पास कहानियों और निबंधों सहित हजारों कविताएँ हैं। उन्होंने अब तक छह किताबें लिखी और प्रकाशित की हैं। उनकी रचनाओं का अब तक 29 भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। कवि पोखरेल को विश्व साहित्य में उनके साहित्यिक योगदान के लिए समय-समय पर प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। नेपाली कवि संतोष कुमार पोखरेल को एंटोन चेखव ऑटम 2020, क्रीमिया, रूस द्वारा 'विश्व कवि' की उपाधि से सम्मानित किया गया है। जनवरी 2022 में, कवि संतोष कुमार पोखरेल को यूक्रेन के साहित्यिक फाउंडेशन और 10 देशों के संगठनों द्वारा प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण कवि पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। फिर से, जनवरी 2022 में, उन्हें इंटरनेशनल सेंटर फॉर पोएट्री ट्रांसलेशन एंड रिसर्च एंड इंटरनेशनल पोएट्री (बहुभाषी), चीन के "जर्नल ऑफ रैंडिसन" द्वारा "द इंटरनेशनल बेस्ट पोएट" की उपाधि से सम्मानित किया गया।

विश्व कवि संतोष कुमार पोखरेल अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मंच के प्रमुख हैं। अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मंच अपना स्वयं का फेसबुक समूह चलाता है और विश्व कविता संग्रह प्रकाशित करता है।

उन्होंने पीपुल्स फ्रेंडशिप यूनिवर्सिटी, मॉस्को से सिविल इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है। कवि पोखरेल, जिनके पास त्रिभुवन विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री है, वे उसी त्रिभुवन विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर रहे हैं। pokharel.santosh@gmail.com



सेज-ए-जख्म सजाऊँ 


सेज-ए-जख्म सजाऊँ

ऊन की गजलें गाऊँ

नींद कहाँ?यादों में खोयी

खुद को ही भूल जाऊँ।

रैनन होती है अंधेरी

टूट गयी आशा जो मेरी

बरसों बीते देखे तुम को

अब मैं मूरझा जाऊँ।

फिर है आईं ऊन की यादें 

फिर दो अश्क बहाऊँ

देखूँ सपनों में परछाई

सेज-ए-जख्म सजाऊँ।


आज चुपके से रोया


कभी बेखुदी से गुजरा 

कभी फुट फुट कर रोया 

मैंने क्या पाया था और क्या खोया ?

शायद कुछ बोया तो था-

दर्द; जो थे इकट्ठे हुए 

उसे आसुओं से धोया ।


गुल बिखरे थें इर्दगिर्द, उन्हें

बारीकी से इकठ्ठा किया

और उनकी माला पिरोया 

खूद अपने गले में डाल दी 

और दिल फाड़कर रोया ।


जिन्दगी उतनी भी बिरान नहीं

उसकी तन्हाइयों से कुछ लिया  

जिसके सहारे अभी तक बना हूँ 

सभी उसीको दिया

कभी भी जमीर मेरा न सोया

इसी लिए आज चुपके से रोया । 

सर्वाअधिकार कवि में सुरक्षित



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