Monday, May 14, 2018

पाँचवा मौसम -- कुंंती

जीवन में न जाने कैसी है कमी
जो अब तक न पूरी हो सकी
जाने कैसी है तलाश
जो आज तक अधूरी ही रही
आखां में सजे सपने नए
जीवन में नए रंग घुले
मगर उन खुशियों के रंग
इन्द्रधनुषी रंगो से न ढले
नयनां की कमान से
बाण तो अनेक चले
मगर कोई चितवन
हदय न बींध सकी

कविताएं - सुजाता


समय के तेवर और तस्वीरें

कितनी ही तस्वीरें हैं
घर में बिखरी हुई
एलबमों में बंद
दीवारों पर टंगी
कैद कुछ चौखटों, अलमारियों, दराजों में
धीमे-धीमे सांस लेतीं
बहुत कम हैं
आँखों की चमक बरकरार जिनमें
अधिकतर तो धुंधला गयीं
सपनों के झुरमुटे में

रीतू कलसी की कुछ कविताएं

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