Saturday, February 1, 2025

रीतू कलसी की कुछ कविताएं

 

हम और तुम

भले चाहें  युद्ध न हों

पर युद्ध होंगे 


और मरना किसे 

इस युद्ध में यकीनन

हमको तुमको


नेता आए,नेता गए 

दर्ज हुआ युद्ध इतिहास मे


तो युद्ध होंगे

इतिहास मे आने को

Saturday, December 21, 2024

'ज़रूरत भर सुविधा' चन्द्रेखा ढडवाल

चन्द्रेखा ढडवाल जी की काव्य पुस्तक 'ज़रूरत भर सुविधा'मु झे अमृतसर में रह रही हिमाचल मूल की कवित्री सुजाता जी से प्राप्त हुई। यह पुस्तक मुझे देते हुए उन्होंने इसे पढ़ने के लिए भी कहा। लेकिन और झमेलों ने मुझे ऐसा उलझाया की लगभग दो महीने यह पुस्तक मेरे ट्रैवल बैग में पड़ी मेरे साथ-साथ सफ़र करती रही।फर मैने इस पुस्तक को पढ़ना शुरू किया तो एक एक कर सारी कविताएं पढ़ डाली। मैने इस पुस्तक के सरवर्क को काफी देर निहारा लेकिन मुझे इसकी समझ नहीं आई। लेकिन एक बात मेरी समझ में आ गई की सूक्ष्म कला बारीक बुद्धि वालों के लिए है। इसमें कुछ कटे हुए पेड़ों के तने दिखाई दे रहे हैं।  एक कटे हुए पेड़ के तने पर एक हाथ की आकृति दिखाई दे रही है। शायद यह संकेत करता है की हम सिर्फ प्रकृति पर परिहार नहीं कर रहे बल्कि इंसान खुद अपनी जड़ें काट रहा है। प्रतिरोध तो प्रकृति लेगी। सरवर्क के अर्थ और भी हो सकते हैं। फैली कविता पेड़ सुनों भी इसी और इशारा करती है:


किन्हीं पलों विशेष में
हो नहीं सकते ऐसे वायवी
कि तुम्हारे आर  पार होती

Sunday, July 28, 2024

चेन सु चिन की कुछ कविताएं

 सेंटियागो में आंखे

( ला चेस्कोना में)


यहां हर तरफ आखें हैं

चुफेरे हैं आखों के बने चिन्ह

किसी सख्त प्रेमी की दबंग आखें

अंदर कमरे से घूर रही हैं

बगीचे की तरफ

यह जानने के लिए की

प्यार अभी तक कायम है की नही


आखें तो प्यार की तलाश में

स्थिर हो गई लगती हैं

अंधे प्यार की चाह


ओ! मेरे नेरुदा

यहां पर बहुत सारी आखें हैं


आखें , आखें और आखें

कौन सी हैं मेरी

और कौन सी हैं

तुम्हारी आंखे


क्या हम एक जोड़ी 

Saturday, March 16, 2024

'नादान आदमी का सच ’ हमारा तुम्हारा सच - सुजाता


अम्बिका दत्त जी का काव्य –संग्रह ’नादान आदमी का सच ’ पढ़ते ही ताज़ी हवा के झोंके की छुअन सी महसूस होती है। हिंदी और राजस्थानी में उनके नौ पुस्तक–संग्रह (ख़ास तौर पर कविताएं) प्रकाशित हो चुके हैं और वे अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।’नादान आदमी का सच ’ उनका दसवां काव्य –संग्रह जीवन की विविधता  व नवीनता लिए हमारे समक्ष है।

’ प्रार्थना के लिए प्रार्थना ’ संग्रह की पहली कविता है। एक संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते कवि कामना करता है कि लोभ, लिप्सा, मद –मोह, अभिमान और दिखावे से बच कर प्रार्थना जीवन में सहज –शुभ कर्म 

बन कर उभरे।


अम्बिका दत्त जी की कविताओं में गज़ब की सादगी है तथा चिंता भी कि इन दिनों शरीफ़ लोग कितने निरीह व

Saturday, February 3, 2024

एंजेला कोस्टा की कुछ अनुवादित कविताएं

एंजेला कोस्टा का जन्म 1973 में अल्बानिया में हुआ था। वह 1995 से इटली में रह रहे हैं। उन्होंने 11 पुस्तकें प्रकाशित की हैं जिनमें शामिल हैं: अल्बानिया और इटली में उपन्यास, कविताएं और परियों की कहानियां। एंजेला कोस्टा अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका ऑर्फ्यू की संपादक हैं। वह अल्बानिया, कोसोवो, इटली, बेल्जियम, ग्रीस, लेबनान, संयुक्त राज्य अमेरिका और मोरक्को में विभिन्न साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रों के लिए एक अनुवादक और पत्रकार भी हैं। आप समाचार पत्रों कैलाब्रिया लाइव और एलेसेंड्रिया टुडे, समाचार पत्र ों नेसियोनल, ले रेडिसी आदि के लिए लेख लिखते हैं।


मेरी माँ के लिए


मैंने कई पंक्तियाँ लिखीं

आँसुओं के लिए अंतहीन छंद,

दर्द प्रेम

तुम भी कहाँ हो मेरी माँ!

मैं तुम्हारी बंद आँखों को एक बार अच्छाई से भरकर चूम लेता हूँ!

मैं तुम्हारे अभी भी गर्म हाथों को वैसे ही सहलाता हूँ 

जैसे तुमने एक बार किया था;

मैं तुम्हारे असमय बुढ़ापे की झुर्रियों को अपनी उँगलियों से छूता हूँ

तुम्हारी सुस्ती को स्वीकार कर पाने के कारण,

Monday, January 1, 2024

शशि पाठक की कुछ नई कविताएं


1----

फर्क होता है

खुश होने और सुखी होने में ।

ज़रुरी नहीं कि

हर सुखी व्यक्ति खुश भी हो  ।

खुशी मन की एक स्थिति है ,

जबकि सुख

सुविधाओं पर आश्रित है ।

सुविधाएं खुशी नहीं

सुख देती हैं ।

अभावग्रस्त व्यक्ति भी 

खुश हो सकता है

और

सुखी व्यक्ति भी नाखुश रह सकता है ।

2-----

ज़िन्दा है इंसान

सपनोँ के सहारे

Saturday, November 11, 2023

नसीहत का सौदा : लघु कथा, सुजाता

  

मां हाथ में एक रुपए का सिक्का लिए बाज़ार निकली।बच्चे की ललचाई आंखें सिक्के पर टिकी थीं–मां! आते समय कुछ लेते आना।राशन की दुकान पर लाइन लगी थी, ताक –झांक करने के बाद वह आगे बढ़ गई।मिठाई की दुकान पर मात्र भाव पूछा।आगे चौराहे पर नसीहतों की नीलामी हो रही थी,उसने सिक्का दे कर एक नसीहत खरीद ली "सहनशीलता अमूल्य

छोटा भी सुन्दर : रंजीत कुमार साहू

 

छोटे और दुर्बल का 
कभी न करो 
जाने अनजाने में 
उपहास  
छोटा सा दिया 
घनघोर अँधेरे में  
जगा जाता  है  
जीवन की   आस 

धीमा होता है पर 
बदल देता है  
रुख  मौसम का झोंका  
हवा का 
कौन कहता है  वो निर्बल होता है  
घूप में काम देता है दवा का 

छोटा सा ही होता है  सीपी सागर में, 
मोती  उस से भी है छोटा होता 

Monday, October 30, 2023

प्रोत्साहन: शैलेंद्र

"सफलता के पायदान"

प्राक्कन को लिखने का आग्रह प्राप्त हुआ,जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार

कर लिया। आज पुस्तक संबंधित

पोस्ट को देख एक कविता लिखने

को प्रोत्साहित हो उठा।


मनोबल ऊंचा,

मनोबल बढ़ा,

दिशा निर्देशन

भी एक विधा....।।


दो पंक्तियां लिखना,

चंद अशआर गढ़ना,

अनुभवों को साझां कर,

Wednesday, October 18, 2023

सुखजीत की क्था शैली के बारे कुछ काविक भाव: शैलेंद्र


मैं फंस चला हूं....


कल्पना की गहराइयों को छूकर,

पूछ पूछ कर सच को अभिव्यक्त कर,

परिचय परिचर्चा में भी

अव्वलता पाकर,

सच झूठ के संघर्ष में फंसकर निकल जाना...

Monday, October 9, 2023

"भूकंप पर कविता" - डॉक्टर सलोनी चावला

 (धरती और मानवता का सन्देश) 


                   

लोगों ने कहा - अरे भूकंप आया !

मैं बोली - ना, किसी का इशारा आया। 


धरती मां ने हमें ज़रा प्यार से हिलाया,

जैसे ज़मीर को सोते हुए से जगाया। 


शायद आज धरती माँ का दिल भर आया।

और हम सभी तक यह पैगाम पहुंचाया। 


इस पैगाम से हमें यह एहसास दिलाया - 

Monday, September 18, 2023

एनसीपीए के संयोग से लिटरेरी वारियर ग्रुप द्वारा नीलम सक्सेना चंद्रा की नवीनतम पुस्तक "मोह से बंधी मैं" का सस्वर पाठ

ऐसे होते हैं, जो ज़िंदगी भर के लिए  अपनी छाप छोड़ जाते हैं। मैं बात कर रही हूं ऐसी ही एक रोमांचक शाम की जिसके एक एक पल में साहित्य के अनेक रंगों का मिलाप था। दिल को छू जाने वाली कविताएं और मोहित कर दे ऐसा नृत्य था।यह उत्कृष्ट कार्यक्रम प्रतिष्ठित एनसीपीए में दिनांक ६ सितंबर को आयोजित किया गया था।

कार्यक्रम की शुरुआत नीलम सक्सेना चंद्रा द्वारा लिखी गई पुस्तक "मोह से बंधी मैं" के वाचन के साथ हुई।नीलम को

Wednesday, September 6, 2023

सावन की छवि : रंजीत कुमार साहू

नभ ने संदेश भेजा सागर को 

तृषा से धरती जल रही है  
जीवन की डोर ढीली हो रही है 
प्राणी की  सांस  मचल रही है 
सौगात भेजा है सागर ने आज 
उमड़ पड़ा है बादलों का झुंड 
फिर आकाश  चूमने लगा है 


गुनगुनाने लगे पहाड़ी झरने 
भीगने लगे है  सूखे पत्थर 
जीवन की आस चैन भरी  सांस 
देखे नयन  भटके जिधर 
फैलाया  धरती आँचल अपना  
बिखरा हरा रंग उस पर 
फिर मौसम  घूमने लगा है 

Wednesday, June 21, 2023

डाँ. अंजना अनिल की कुछ कविताएं

  


आनंद

अजब अनूठी... मीठी

सिहरन सा... वो दिन

निराला होता है

जब पंछी के कलरव सी

विरल अभिव्यक्ति

कलम की नोक पर

आ बैठती है...

सूरज के उगते प्रकाश संग

रंग-बिरंगी आस्थाओं की अल्पना

घर द्वार

सजा देती है!

लगता है... ग्राम परिवेश

मानस के आकाश को

अपनी सुरम्यता से

आच्छादित कर देता है...

Monday, April 10, 2023

रंजीत साहू की दो कवियाएँ


गुमसुम हुई शाम सुहानी 


फिर बहकने लगा  फागुन देखो,


टेसू के पेड़ों  से गुजर गया I


ढलती शाम की जलती किरणों में,


इश्क़ का हुनर  बिखर गया !



एक कश्मकश शुरू हुई  दिल में, 


भूलने और याद करने  में I


 फर्क सब कुछ मिटने  लगा है, 


मिट जाने  या ज़िन्दा रहने में  I

रीतू कलसी की कुछ कविताएं

  हम और तुम भले चाहें  युद्ध न हों पर युद्ध होंगे  और मरना किसे  इस युद्ध में यकीनन हमको तुमको नेता आए,नेता गए  दर्ज हुआ युद्ध इतिहास मे तो ...