Wednesday, September 6, 2023

सावन की छवि : रंजीत कुमार साहू

नभ ने संदेश भेजा सागर को 

तृषा से धरती जल रही है  
जीवन की डोर ढीली हो रही है 
प्राणी की  सांस  मचल रही है 
सौगात भेजा है सागर ने आज 
उमड़ पड़ा है बादलों का झुंड 
फिर आकाश  चूमने लगा है 


गुनगुनाने लगे पहाड़ी झरने 
भीगने लगे है  सूखे पत्थर 
जीवन की आस चैन भरी  सांस 
देखे नयन  भटके जिधर 
फैलाया  धरती आँचल अपना  
बिखरा हरा रंग उस पर 
फिर मौसम  घूमने लगा है 

कोयल की मीठी कुहू कुहू बोली 
गूंजने लगी है उपवन में ,
थिरकने लगे है मोर के पंख,
देख के  घटा नील  गगन में ,
महकने  लगे फूल कदम्ब के
गुलमेहंदी खिला चमन में 
फिर सावन झूमने लगा है  

 

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