गुमसुम हुई शाम सुहानी
फिर बहकने लगा फागुन देखो,
टेसू के पेड़ों से गुजर गया I
ढलती शाम की जलती किरणों में,
इश्क़ का हुनर बिखर गया !
एक कश्मकश शुरू हुई दिल में,
भूलने और याद करने में I
फर्क सब कुछ मिटने लगा है,
मिट जाने या ज़िन्दा रहने में I
गुमसुम हुई शाम सुहानी
फिर बहकने लगा फागुन देखो,
टेसू के पेड़ों से गुजर गया I
ढलती शाम की जलती किरणों में,
इश्क़ का हुनर बिखर गया !
एक कश्मकश शुरू हुई दिल में,
भूलने और याद करने में I
फर्क सब कुछ मिटने लगा है,
मिट जाने या ज़िन्दा रहने में I
डॉ संगीता सिंह का जन्म 26 फरवरी को हुआ था। ये स्वर्गीय श्री नरेंद्र बहादुर सिंह एवं श्रीमती आशालता सिंह की संतान हैं माता पिता राजकीय सेवा...