Saturday, July 5, 2025

डॉ संगीता सिंह की कुछ कविताएं , राजस्थान


डॉ संगीता सिंह का जन्म 26 फरवरी को हुआ था। ये स्वर्गीय श्री नरेंद्र  बहादुर सिंह एवं  श्रीमती आशालता सिंह की संतान हैं माता पिता राजकीय सेवा में क्रमशः  अंग्रेजी एवं हिंदी के व्याख्याता रहे। घर का वातावरण पूर्णतया साहित्यिक रहा।ये कोटा राजस्थान की निवासी हैं। इन्होंने  राजस्थान विश्वविद्यालय से अंग्रेजी  साहित्य की पढ़ाई  तथा पी एच डी की है। इसके अतिरिक्त इन्होंने विद्यालय  में हिंदी साहित्य,  अंग्रेजी साहित्य तथा महाविद्यालय मेंदर्शन शास्त्र, धर्मशास्त्र एवं संस्कृत का भी अध्ययन किया है।ये  पैंतीस वर्षों से लिख रही हैं। इन्होंने अपनी पहली रचना का सृजन 1989 में किया था। ये अब तक लगभग 50 रचनाओं का सृजन तथा लगभग 100 रचनाओं का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद कर  चुकी हैं।  यह पुस्तक समीक्षा भी लिखती हैं। इनके अनुसार लेखन एक  ऐसा माध्यम है जिससे आप अपने मन के भावों और विचारों को व्यक्त कर सकने के साथ साथ समाज में जागरूकता ला सकते हैं। ये   उच्च शिक्षा विभाग  (सरकारी) की सेवानिवृत्त  प्रोफेसर (अंग्रेजी विभाग)हैं ।  इनके मनपसंद रचनाकार/ लेखक/लेखिका /कवि/कवयित्री /उपन्यासकार/कथाकार रामधारी सिंह " दिनकर", हरिवंश राय बच्चन, शिवानी हैं। इनका मनपसंद उपन्यास  शिवानी का ' कैंजा' और अंग्रेजी में जार्ज ऑरवेल का    ' नाइनटीन ऐटी फोर 'हैं । इन्हें रामधारी सिंह दिनकर की  ' समर शेष है' कविता, हरिवंश राय बच्चन की कविता ' पथ की पहचान', भगवद्गीता एवं  रामचरित मानस पढ़ना  पसंद हैं। ये हिंदी, अंग्रेजी के साथ राजस्थानी में भी कविताएं लिखती हैं। इन्हे पद्य विधा में लिखना पसंद हैं। ये अंग्रेजी, हिंदी एवं राजस्थानी भाषाओं में रचनाओं का सृजन करती हैं। इनके द्वारा सृजन की हुई इनकी मनपसंद रचना 'अमन का  पैगाम', अंग्रेजी में Walk  on the Tight Rope'   राजस्थानी भाषा की कविता  'अब तो मिटा लै कालो टीको'  हैं। ये अब तक  'आर्यन लेखिका मंच ' के कवि सम्मेलन में जुड़कर उसकी शोभा व गरिमा बढ़ा  चुकी हैं। ये 'अंतर्राष्ट्रीय काव्य साधिका मंच' तथा 'राजस्थानी लेखिका संस्थान', 'मां के नवरात्रे कविता संकलन आदि  से जुड़ी हुई/ हैं। इनकी रचनाएं डॉ प्रभात कुमार सिंघल के संकलन  'नारी चेतना की साहित्यिक उड़ान'  में प्रकाशित हो चुके हैं। इन्हें अब तक  कई मंचों पर  सम्मानित किया जा चुका है। अब तक इनके तीन अंतरराष्ट्रीय  कविता संग्रहों  के अनुवाद संकलन -' मेरी आत्मा का रत्न ', 'विरह की वेदना'  एवं ' सरगोशियां' प्रकाशित हो चुके हैं जिनका इन्होंने अंग्रेजी से हिंदी भाषा में अनुवाद किया है।

सच्चा सुख

क्या तुमने चखा है कभी सुंदर अनोखा स्वाद

छप्पन भोग, षड-रस भोजन

 सोने के थाल से भी बढ़ कर

कल्पना कर सकते हो?

नहीं ना? जी हां

वो है भूख का स्वाद!!

यह  स्वाद उनसे पूछो जिनको अच्छी भूख नहीं लगती।

लिया है  कभी कोई सच्चा आनंद?

बाग बगीचों, मॉल, फिल्मों मे, मखमली बिस्तर पर

सुंदर घर और सजीले कपड़ों में

लिया होगा।

लेकिन क्या कभी लिया है,

परिश्रम की थकान का आनंद ?

यह उनसे पूछो जिनका कभी पसीना नहीं बहता, श्रम बिंदु नहीं आते माथे पर।

जब शुभ कर्म किए हों दिन भर

पूरी निष्ठा और सच्चाई से

तब कैसे आता है संतोष,

 सुख - चैन मेहनत की कमाई से।

 

महिला शक्ति

 मार्ग को प्रशस्त कर

 दुश्मन के किले ध्वस्त कर

 सुरक्षा की कमान तुम संभाल लो


 जज्बा हो बुलंद 

 चाहे टूटे प्रेमछंद

 देश की तकदीर तुम सवार दो


  गृहस्थ छोड़ना पड़े,

  ममत्व तोड़ना पड़े

  देश भक्ति का  तुम प्रमाण दो।


ये धरती हाड़ी रानी की,

ये धरती झांसी रानी की,

ये धरती बलिदानी की

तन मन धन इस पर वार दो।

 विरासत

बच्चों के मन में रस घोलो,

बोना मत  बबूल,अमृत बोलो,

अपने को सच साबित करने

उनसे तो कम से कम झूठ न बोलो, 

बंद की तुमने जो,

 मन की खिड़की खोलो

याद दिलाओ अच्छी याद

कितना दिया उन्हें आशीर्वाद।

मीलों दूर से मिलने कोई आते

मिल जुल कर जन्मदिन मनाते, 

ब्याह शादी में न्योछावर जाते।

 क्यूँ बनाते दरार को खाई,

पहाड़ न बनाओ, उसको रहने दो राई,

फट जाएगा दूध, दूर रखो मन की खटाई।

भौतिकता मे अन्धे होकर,

मन की सुख शांति खोकर, 

भेड़चाल में मत दौड़ाओ, 

विष से कौन जिया है,

कालकूट से उन्हें बचाओ।

विरासत में कैंची नही,

 सुई धागा थमाओ।


दर्पण 

ये कैसे तय करते हो तुम मौन?

कलुषित मन का मालिक कौन?

जो कालिख को करे उजागर, 

वो ही सत्य है, वो ही प्रभाकर।

ढके गंदगी को वो है नकारात्मक,

सत्य प्रकाशित करें सकारात्मक।

मन के अंधतमस के खोलते द्वार, 

चित्रकार, व्यंगकार, कलमकार।

जो होते मन से बीमार,

कैसे सहें कलम की धार।

लेखनी ले जाये पर्दे के पार,

ये ही ढाल है, ये ही तलवार।


अजूबा घर

जंगल है या चिड़ियाघर

समझ से परे है इसके पर

कहीं मुर्गे के साथ बैठा है अजगर!!


मुंडेर पर बैठे हैं

 कुछ चील, गिद्ध, कौव्वे

प्रतीक्षा में आंख गड़ाए 

 कि कब कोई कमजोर पड़े, 

झुंड से अलग हो,

लड़खड़ा कर गिर पड़े,

और उसका सब कुछ लील जाएं हम।

सोचते हैं वो कि,

 अंततः सब कुछ उनका है।


देखी थी मैंने एक दिन

दो मुंह की सर्पिणी

थोड़ी थोड़ी देर में 

बदल देती थी

अपनी दिशा

और चलने लगती थी 

बिल्कुल विपरीत

क्षण भर में।


वो पिंजरा भी अजीब है

उसमे कोई चूहा नही फंसता

गिरगिट आते हैं

उनको पता है 

 वहां कोई शीशा नही है

कि कोई उनके बदलते रंग

उनको दिखा सके।


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