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सच्चा सुख
क्या तुमने चखा है कभी सुंदर अनोखा स्वाद
छप्पन भोग, षड-रस भोजन
सोने के थाल से भी बढ़ कर
कल्पना कर सकते हो?
नहीं ना? जी हां
वो है भूख का स्वाद!!
यह स्वाद उनसे पूछो जिनको अच्छी भूख नहीं लगती।
लिया है कभी कोई सच्चा आनंद?
बाग बगीचों, मॉल, फिल्मों मे, मखमली बिस्तर पर
सुंदर घर और सजीले कपड़ों में
लिया होगा।
लेकिन क्या कभी लिया है,
परिश्रम की थकान का आनंद ?
यह उनसे पूछो जिनका कभी पसीना नहीं बहता, श्रम बिंदु नहीं आते माथे पर।
जब शुभ कर्म किए हों दिन भर
पूरी निष्ठा और सच्चाई से
तब कैसे आता है संतोष,
सुख - चैन मेहनत की कमाई से।
महिला शक्ति
मार्ग को प्रशस्त कर
दुश्मन के किले ध्वस्त कर
सुरक्षा की कमान तुम संभाल लो
जज्बा हो बुलंद
चाहे टूटे प्रेमछंद
देश की तकदीर तुम सवार दो
गृहस्थ छोड़ना पड़े,
ममत्व तोड़ना पड़े
देश भक्ति का तुम प्रमाण दो।
ये धरती हाड़ी रानी की,
ये धरती झांसी रानी की,
ये धरती बलिदानी की
तन मन धन इस पर वार दो।
विरासत
बच्चों के मन में रस घोलो,
बोना मत बबूल,अमृत बोलो,
अपने को सच साबित करने
उनसे तो कम से कम झूठ न बोलो,
बंद की तुमने जो,
मन की खिड़की खोलो
याद दिलाओ अच्छी याद
कितना दिया उन्हें आशीर्वाद।
मीलों दूर से मिलने कोई आते
मिल जुल कर जन्मदिन मनाते,
ब्याह शादी में न्योछावर जाते।
क्यूँ बनाते दरार को खाई,
पहाड़ न बनाओ, उसको रहने दो राई,
फट जाएगा दूध, दूर रखो मन की खटाई।
भौतिकता मे अन्धे होकर,
मन की सुख शांति खोकर,
भेड़चाल में मत दौड़ाओ,
विष से कौन जिया है,
कालकूट से उन्हें बचाओ।
विरासत में कैंची नही,
सुई धागा थमाओ।
दर्पण
ये कैसे तय करते हो तुम मौन?
कलुषित मन का मालिक कौन?
जो कालिख को करे उजागर,
वो ही सत्य है, वो ही प्रभाकर।
ढके गंदगी को वो है नकारात्मक,
सत्य प्रकाशित करें सकारात्मक।
मन के अंधतमस के खोलते द्वार,
चित्रकार, व्यंगकार, कलमकार।
जो होते मन से बीमार,
कैसे सहें कलम की धार।
लेखनी ले जाये पर्दे के पार,
ये ही ढाल है, ये ही तलवार।
अजूबा घर
जंगल है या चिड़ियाघर
समझ से परे है इसके पर
कहीं मुर्गे के साथ बैठा है अजगर!!
मुंडेर पर बैठे हैं
कुछ चील, गिद्ध, कौव्वे
प्रतीक्षा में आंख गड़ाए
कि कब कोई कमजोर पड़े,
झुंड से अलग हो,
लड़खड़ा कर गिर पड़े,
और उसका सब कुछ लील जाएं हम।
सोचते हैं वो कि,
अंततः सब कुछ उनका है।
देखी थी मैंने एक दिन
दो मुंह की सर्पिणी
थोड़ी थोड़ी देर में
बदल देती थी
अपनी दिशा
और चलने लगती थी
बिल्कुल विपरीत
क्षण भर में।
वो पिंजरा भी अजीब है
उसमे कोई चूहा नही फंसता
गिरगिट आते हैं
उनको पता है
वहां कोई शीशा नही है
कि कोई उनके बदलते रंग
उनको दिखा सके।
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